नई दिल्लीः कोरोना के भय से देश और दुनिया ऐसे हालात से गुजर रहे हैं जहां लाकडाउन और वायरस को छोड़ दूसरी खबरों यहां तक की लोगों के निधन तक की सूचनाएं रिश्तेदारों तक नहीं पहुंच पा रही हैं. वैसे भी इन सूचनाओं के पहुंचन से भी यातायात की दिक्कतों के चलते निजी उपस्थितियां बंद है. इसी खबर को लें तो नॉर्वे के ओस्लों में रहने वाली भारतीय उर्दू की लेखिका शाहिदा बेगम के निधन की सूचना भारत में काफी समय बाद पहुंची वह भी नॉर्वे में रह रहे प्रवासी लेखक, संपादक शरद आलोक के सोशल मीडिया पोस्ट से. पहले वह शाहिदा वसीम के नाम से लिखती थीं. उनकी रचनायें ‘परिचय’ और कोलकाता की ‘इंशा’ पत्रिका में प्रकाशित होती रहीं. उनके निधन से लेखकों में गहरा दुख है. शरद आलोक उनके निधन की सूचना के साथ ही उनसे जुड़े संस्मरणों को भी साझा किया है.
उन्होंने लिखा एक अच्छी इन्सान और उर्दू की भारतीय लेखिका दुनिया से विदा हो गयीं. इलाहाबाद अब प्रयागराज में जन्मी शाहिदा बेगम नहीं रहीं. वह उर्दू में लिखती थीं और नासिरा शर्मा की बचपन की सहेली थीं. सन 1982 में मेरी उनसे पहली मुलाक़ात हुई थी. मैं साग्न स्टूडेंट टाउन, ओस्लो में रहता था वह भी मेरे घर से थोड़ी दूरी पर रहती थीं. उनकी तीन पुत्रियां और एक पुत्र आलमगीर था, युवावस्था में ही जिसकी मृत्यु हो गयी थी. शाहिदा बेगम अपने पुत्र की मृत्यु से काफी टूट गई थीं. उनके पति वसीम बेग लखनऊ के मौलवीगंज के थे, जिनका निधन बहुत पहले ही हो चुका था. जहां मैं वाइतवेत, ओस्लो में रहता हूं यहां भी वह करीब पन्द्रह वर्ष रही होंगी. पुत्र की मृत्यु के बाद वह अपनी बेटी के साथ रहने लगी थीं. मैंने पांच दशक बाद दोबारा फोन पर नासिरा शर्मा से उन्हें मिलाया था. उन्होंने मुझे नार्वे की उर्दू कहानियां के सम्पादन करने में मदद की थी. वह बेशक इस दुनिया में नहीं हैं पर उनकी यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी.