प्रयागराज: उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के स्थानीय सभागार में स्वर्ग रंगमंडल ने अतुल यदुवंशी के निर्देशन में 'बहुरूपिया' नामक नाट्य प्रस्तुति नौटंकी शैली में की. लोककथा पर आधारित इस प्रस्तुति का नौटंकी रूपांतरण राजकुमार श्रीवास्तव का था जो न केवल प्रासंगिक बल्कि नाट्य की शर्तों के अनुकूल भी था. एक लोककथा को नौटंकी में रूपांतरित कर जिस बड़े मूल्य, सत्य और विचार के संरक्षण की चिंता साकार की गई, वह हमारे लिए आज बहुत आवश्यक है. राजा के पास बहुरूपिया अपनी व्यथा लेकर जाता है कि वह स्वांग धारण कर रोजी कमाता है पर अब राज्य उस कला को महत्व नहीं देता, फलतः यह पुरातन कला अपनी अपनी पहचान खोने को अभिशप्त हो गयी है. राजा उसकी बातें सुनता है और स्वांग करके ईनाम पाने को प्रेरित करता है. बहुरूपिया कहता है कि वह जो भी स्वांग करता है, पूरी निष्ठा से उसे जीता है. यह सिलसिला शुरू होता है और वह पहले संत, फिर चुड़ैल तथा अंत में सती का स्वांग करता है और अपने दायित्व में सफल होता है. दरबार का कुटिल नाई उसे मिटा देने का कुचक्र करता रहता है क्योंकि वह उसकी बेटी से प्रेम करता है. उसके स्वांग धरते जाने से कई अनहोनी घटनाएं भी होती हैं और अंततः लोक में प्रतिष्ठित सत्य विचार की विजय होती है. छद्म हारता है, लोक विजेता होता है क्योंकि वह स्वांग को भी जीवन सत्य स्वीकार करता है.
अतुल यदुवंशी ने शताब्दियों से चली आ रही नौटंकी को पूरी तरह केंद्रीय मंच में बदल दिया है और उसे आधुनिक नाटक के लोकप्रिय विकल्प के रूप में खड़ा कर दिया है. एक दौर में छत्तीसगढ़ी बोली में और वहां के नाचा नाट्यरूप को लेकर जिस तरह प्रयोग करके हबीब तनवीर ने नया थिएटर के माध्यम से एक बड़ा राष्ट्रीय रंगमंच तैयार किया था, अतुल यदुवंशी उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और नौटंकी जैसे लोकनाट्य रूप को लोक और आभिजात्य के उस बिंदु पर ग्रहण कर रहे हैं जहां वह आधुनिक रंगमंच का कारगर विकल्प बनकर उभर रहा है. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करने वाले कला समीक्षक ज्योतिष जोशी इस मंचन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि प्रस्तुति में नक्कारा और गायन की कुशलता के साथ पात्रों के अभिनय से को देखकर यह सहसा विश्वास करना कठिन हो रहा था कि हम एक नौटंकी की प्रस्तुति देख रहे हैं या दिल्ली के मंच पर कोई पूरी तैयारी के साथ बड़ा नाटक प्रस्तुत होता देख रहे हैं. वेश भूषा, अभिनय, गायन, सार्थक और व्यंग्योक्त संवाद और भावपूर्ण स्थलों की पहचान को जी सकने की सामर्थ्य से युक्त पात्रों ने अतुल की निर्देशकीय कुशलता को सिद्ध किया. इस कार्यक्रम में लोक, लोक परम्परा और लोक कलाओं की चिंता, लेखन और उसके लिए किए गए प्रयासों के लिए ज्योतिष जोशी को भारतीय लोक कलाकार संघ की ओर से 'फोक आर्ट एम्बेसडर' का सम्मान भी दिया गया.