पंडित प्रताप नारायण मिश्र की पुण्यतिथि पर आधुनिक हिंदी, खड़ी बोली और हिंदी भाषा के लिए उनके योगदान को याद किया जाना बेहद जरूरी है. यह नियति का ही चक्र था कि प्रताप जी के पिता उन्हें ज्योतिष की शिक्षा देना चाहते थे, पर न तो उनका मन वहां लगा, न ही अंग्रेजी स्कूल में ही लगा. पर स्वाध्याय से उन्होंने जो कुछ पढ़ा उससे हिंदी, उर्दू, फारसी, संस्कृत और बंगला भाषा पर उन्हें महारथ हासिल हो गई. महज 38 वर्ष की अल्प आयु के बावजूद हिंदी, विशेषकर खड़ी बोली में उनके योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता. प्रताप नारायण मिश्र सही मायने में भारतेंदु हरिश्चंद्र निर्मित व प्रेरित हिंदी लेखकों की सेना के महारथी थे, और जब तक हिंदी भाषा रहेगी, उनके योगदान को याद किया जाता रहेगा.
प्रताप नारायण मिश्र ने अपनी साहित्यिक यात्रा का आरंभ ख्याल एवं लवनियों से किया था. वह लोक साहित्य का सृजन कर उसे संरक्षित करने की दिशा में इस कदर प्रतिबद्ध रहे कि कुछ आलोचक उन्हें उस दौर के लोक कथा साहित्य पथ के प्रहरी के रूप में देखते हैं. हालांकि कुछ वर्षों  उपरांत ही प्रताप नारायण मिश्र  गद्य लेखन के क्षेत्र में उतर आए. वह भारतेंदु हरिश्चंद्र के व्यक्तित्व और कार्य से इस कदर प्रभावित थे कि उन्हें अपना गुरु मानते थे. इसीलिए उनके आदर्शो के अनुगामी बन आधुनिक हिंदी भाषा तथा साहित्य के निर्माण में सतत लगे रहे, हालांकि उन्हें वह उम्र नहीं मिली. प्रताप नारायण मिश्र ने भारतेंदु हरिश्चंद्र की तरह व्यावहारिक भाषा शैली अपनाकर कई मौलिक और अनूदित रचनाएं लिखीं. भारतेंदु हरिश्चंद्र की कवी-वचन-सुधा से प्रेरित होकर मिश्र ने कविताएं भी लिखीं. उन्होंने ब्राह्मण एवं हिंदुस्तान नामक पत्रों का सफलतापूर्वक संपादन भी किया.