गुरुग्राम: हिंदी की ख्यात कथाकार और उपन्यासकार मन्नू भंडारी का नब्बे वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वो लंबे समय से बीमार थीं और गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। सोमवार दोपहर करीब एक बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्यप्रदेश के भानपुरा में हुआ था। उनको लेखन का संस्कार अपने पिता सुखसम्पत राय भंडारी  से मिला था। एम ए करने के बाद मन्नू भंडारी ने कलकत्ता (अब कोलकाता) के बालीगंज शिक्षा सदन में पढ़ाने का काम शुरु कर दिया। था। मन्नू भंडारी ने दिल्ली विश्वनिद्यालय के मिरांडा हाउस में प्राध्यापिका के रूप में कार्य किया। वो मध्य प्रदेश के विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की अध्यक्ष भी रहीं।

मन्नू भंडारी ने पहली कहानी मैं हार गई के नाम से लिखी और उसको कहानी पत्रिका में प्रकाशन के लिए भेज दिया। कहानी पत्रिका के संपादक भैरव प्रसाद गुप्त ने उनकी कहानी की प्रशंसा की और उसको कहानी के अंक में प्रकाशित भी किया। इसके साथ भी एक बेहद दिलचस्प किस्सा जुड़ा है। मन्नू भंडारी की दो आरंभिक कहानियों के साथ उनको कोई चित्र प्रकाशित नहीं हुआ था। उनके नाम से यह स्पष्ट नहीं होता कि वो महिला हैं या पुरुष। मन्नू भंडारी ने लिखा है कि उनकी आरंभिक कहानियों पर जो प्रतिक्रियाएं आईं वो प्रिय भाई के संबोधन से शुरु होती थीं। मन्नू भंडारी ने ये भी लिखा कि इस तरह के पत्रों से एक संतोष भी होता था कि कहानी की प्रशंसा एक लड़की होने के नाते नहीं हुई।

1957 में मन्नू जी का पहला कहानी संग्रह मैं हार गई के नाम से राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था। दूसरा कहानी संकलन तीन निगाहों की एक तस्वीर नाम से प्रकाशित हुआ था जिसको श्रमजीवी प्रकाशन ने छापा था। इस बीच राजेन्द्र यादव से उनकी मित्रता प्रगाढ़ होने लगी थी। 1959 में मन्नू भंडारी की शादी राजेन्द्र यादव से हुई। राजेन्द्र यादव के साथ मिलकर मन्नू भंडारी ने एक प्रयोगात्मक उपन्यास लिखा एक इंच मुस्कान । जनवरी 1961 से लेकर दिसंबर 1961 तक ये उपन्यास ज्ञानोदय में धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुआ। इसकी एक किश्त राजेन्द्र यादव लिखते थे और एक किश्त मन्नू भंडारी। पहली किश्त राजेन्द्र यादव ने और अंतिम किश्त मन्नू भंडारी ने लिखी थी। बाद में मन्नू भंडारी ने महाभोज. आपका बंटी और स्वामी नाम से उपन्यास लिखे जो काफी चर्चित रहे। 1964 में मन्नू भंडारी कोलकाता छोड़कर दिल्ली आ गईं। यहां उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में अध्यापन शुरु किया। दूसरे संकलन के प्रकाशन के आठ साल बाद उनका एक और संग्रह यही सच है के नाम से प्रकाशित हुआ था। उनकी कहानी यही सच है पर बासु चटर्जी ने रजनीगंधा फिल्म बनाई। फिल्म तो बन गई लेकिन उनको कोई वितरक नहीं मिलने से एक साल तक उसका प्रदर्शन नहीं हो सका। सालभर बाद जब इस फिल्म को वितरक मिला तो फिल्म काफी सफल रही थी और उसने सिल्वर जुबली मनाई थी। मन्नू भंडारी के जाने पर साहित्य जगत में शोक है।