नई दिल्लीः मनोज बाजपेयी नए जमाने के गिनेचुने कलाकारों में से हैं जिन्होंने कम उम्र में ही हिंदी सिनेमा में एक बड़ा कद हासिल कर लिया था. दिग्गज कलाकार और फिल्म समीक्षक उनके अभिनय का लोहा मानते हैं. दर्शक उनके नाम पर थियेटर जाते हैं और वे जानते हैं कि बाजपेयी सिर्फ अपने मन की फिल्में करते हैं. मनोज बाजपेयी की यह जीवनी टीवी पत्रकार पीयूष पांडे ने लिखी है. पांडे एक दशक से ज़्यादा समय से बाजपेयी से जुड़े रहे हैं और ऐसी घटनाओं और किस्सों के गवाह हैं, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं. इससे पहले पांडे की तीन पुस्तकें 'छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन', 'धंधे मातरम्' और 'कबीरा बैठा डिबेट में' प्रकाशित हो चुकी है.

मनोज बाजपेयी की यह जीवनी अभिनय को लेकर उनके जिद और जुनून की कहानी है, जिसमें पाठकों को कई नई बातें पता लगेंगी, मसलन बाजपेयी के पिता भी पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में ऑडिशन का टेस्ट देने गए थे, उनके पूर्वज अंग्रेजी राज के एक दमनकारी किसान कानून की वजह से उत्तर प्रदेश के रायबरेली से चंपारण आए थे और ये भी कि मनोज बाजपेयी का बचपन उस गांव में बीता है जहां महात्मा गांधी ने अपने प्रसिद्ध चंपारण सत्याग्रह दौरान एक रात्रि विश्राम किया था और फिल्म सत्या के भीखू म्हात्रे का चरित्र मनोज के गृहनगर बेतिया के एक शख्स से प्रेरित था, वगैरह-वगैरह. प्रकाशक का दावा है कि हीरो मनोज बाजपेयी और उनके सिनेमाई सफ़र को जानने के लिए यह एक जरूरी पुस्तक है.