भोपाल, 23 जुलाई, साहित्य अकादमी और भारत भवन ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में उत्तर-पूर्वी और उत्तर लेखक सम्मेलन 'पूर्वोत्तरी' का जब आयोजन किया तो साहित्य व साहित्यकारों की स्थिति पर जम कर चर्चा हुई. इसमें समाज और सभ्यता के अलावा लेखकीय संवेदना और साहित्य की भाषा पर भी चर्चा हुई. अकादमी के सचिव के.श्रीनिवासराव और  की उपस्थिति में  वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद मिश्र ने कहा कि साहित्य हमें आदिमता और निरंकुशता से बाहर लाकर सभ्य बनाता है. सच्चा साहित्य गलत प्रवृत्तियों और अपसंस्कृति के विरोध में स-तर्क संवेदनशीलता के साथ अपना विरोध दर्ज कराता है.

 

विशिष्ट अतिथि के रूप में असमिया लेखक येसे दरजे थोंगछी ने कहा कि पूर्वोत्तर भाषा की दृष्टि से बहुत समृद्ध है. आलम यह है कि एक कबीले में 30- 30 बोलियां बोली जाती हैं.  हर 10 किलोमीटर में भाषा में बदलाव हो जाता है. फिर भी उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में हिन्दी की दमदार उपस्थिति है.

 

मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज श्रीवास्तव ने पूर्वोत्तर को वास्तुपुरुष का मस्तक बताते हुए कहा कि पूर्वोत्तर के कई स्थानों के नाम तक काव्यात्मक हैं, जैसे त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल. सच कहा जाए तो 'पूर्वोत्तरी' जैसे कार्यक्रम दिल और दिमाग के मिलन की तरह हैं.

 

साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक का कहना था कि साहित्यकारों के लिए हमेशा से ही कभी सुविधापूर्ण स्थिति नहीं रही है. सत्ता व साहित्यकार के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है. पर साहित्यकारों की संवेदनशीलता और हथियार तीखे होने चाहिए. लेखक का दायित्व है कि वह अपने आप को पहचाने. उन्होंने कहा कि मुझे मालूम है कि इस दौर में बाजार सब कुछ है, मगर मैं आदमी की जीत का ऐलान करता हूं. एनसायक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में लिखा है कि हम भारतीय भाषाओं का धन्यवाद करते हैं, जिन्होंने दो हजार शब्द दिए हैं. यह दो हजार शब्द देश की किसी एक भाषा या बोली के नहीं, बल्कि विभिन्न भाषा-बोली के हैं.उन्होंने कहा कि भाषाओं का सीमांकन नहीं हो सकता. हर एक भाषा एक-दूसरे से शब्द ग्रहण करती है. हमारे पास जो भाषायी समृद्धि है वह हमारी अपनी है, कहीं से आयातित नहीं है. 

 

साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने अतिथियों का स्वागत और भारत भवन के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी प्रेमशंकर शुक्ल ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

 

यही नहीं  'मेरी रचना मेरा संसार' में अंजना बसु (अंग्रेजी), फेमलिन के. मरक (गारो), मजीद मजाजी (कश्मीरी), दिलीप मायेडबम (मणिपुरी), श्रीराम परिहार (हिंदी) और बुलाकी शर्मा (राजस्थानी) आलेख पाठ हुआ. अध्यक्षता रमेश चंद्र शाह ने की. इसके अलावा प्रख्यात साहित्यकार मंजूर एहतशाम, कुमुद कुमार दत्ता, तपन बंदोपाध्याय, हरि भटनागर, बल्देव सिंह धालीवाल ने अपनी कहानियों का पाठ किया. समकालीन साहित्यिक प्रवृत्तियों पर बोडो भाषा के साहित्यकार अनिल बर की अध्यक्षता में भगवान दास मोरवाल, टी बी चंद्र सुब्बा, रवि रविंदर ने मौजूदा समय में प्रचलित प्रवृत्तियों को रेखांकित किया. 

 

कार्यक्रम के दौरान देश भर के ढेरों रचनाकार जुटे और कविता पाठ भी हुआ. इस मौके पर बघेली कवि शिव शंकर मिश्र सरस ने लोक संस्कृति में रचि-बसी कविता 'पोबा चाहय, पीसा चाहय, तात भात में ढींसा चाहय, आन के माथे फूलय पंचकय, लुमा रहय अऊ हींसा चाहय…' सुनाई. इसके बाद मालवी कवि शिव चौरसिया ने रचना 'कसी या अपनी आजादी, बेमानी पे चढ़ गई बादी…' सुनाई. इसके बाद उन्होंने वर्षा पर केंद्रित रचना बरख राणी शीर्षक से 'आई पालकी बादल हुण की उतरी बरखा राणी…' की प्रस्तुति दी. नेपाली कवि भीम थापा ने 'मां, मैं तुम्हारा एक गरीब बेटा, अल्प शिक्षित, अल्पज्ञ न तो मेरे पास विचारों की खान है…' कविता पेश की. उर्दू कवि मदन मोहन दानिश ने ' हमीं ने लम्हों को यमजा किया तो रात हुई, हमीं बिखेर के लम्हों को दिन बनाते रहे…' और ' फरिश्तों जैसे ही होते हैं तजुर्बे दानिश, तमाम उम्र हमें रास्ता बताते रहे…' शेर पढ़ा. इस मौके पर उत्तरा चकमा, अजिता त्रिपुरा ने कोकबॅराक , मैथिली कवि सत्येंद्र कुमार झा, संस्कृत कवि तुलसीदास परौहा और संताली कवि गणेश ठाकुर हांसदा ने कविताएं पेश की. गणेश ने इस अवसर पर बांसुरी पर संताली धुन भी सुनाई.