नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के लेखक मंच पर 'आदिवासी लेखक सम्मिलन' का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार हरिराम मीणा ने की. उन्होंने कार्यक्रम के प्रारंभ में आदिवासी समाज और साहित्य की विशिष्टता तथा उसकी मूलभूत प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला. रचना-पाठ के क्रम में सर्वप्रथम बंजारा समुदाय के प्रख्यात कहानीकार शांता नाइक ने अपनी कहानी का पाठ किया, जिसमें उन्होंने आदिवासी जनजीवन की कई समस्याओं की ओर बहुत मार्मिक तरीके से इशारा किया. उन्होंने अपनी कहानी के माध्यम से यह भी कहा कि किसी भी संघर्ष की सफलता के लिए व्यक्ति का शिक्षित होना बहुत आवश्यक है. गोरबोली भाषी वी. रामकोटी ने अपनी कहानी 'पीपली दादी' का पाठ किया, जो कि बंजारा समुदाय की मुश्किलों पर आधारित थी, कहानी का मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज में लड़के को वंश चलाने वाला मानकर इसके लिए ओझा, फकीर से लेकर किए जाने वाले विभिन्न अंधविश्वासों पर तीक्ष्ण कटाक्ष करना था.
विश्राम वलवी जो कि भील समुदाय से थे, ने भिलोरी भाषा की अपनी कहानी प्रस्तुत की जो कि उनके समुदाय में बच्चों के कुपोषण की भीषणता को चित्रित करती थी. कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष हरिराम मीणा ने अपनी कविता जो कि बिरसा मुंडा की शहादत पर आधारित थी, का पाठ किया. इससे पहले उन्होंने तीनों रचनाकारों की कहानी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इन कहानियों से आदिवासी समाज की मौजूदा दशा को भलीभाँति समझा जा सकता है. उन्होंने कहा कि आदिवासी जल-जंगल-जमीन की सुरक्षा एक ट्रस्टी की हैसियत से करता आ रहा है. उसने कभी इन संसाधनों का दोहन नहीं किया. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया और सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया.