निहत्था बेसहरा मनुष्य/ कहां तक लड़ सकता है शत्रु से/ जबकि वह चहुं ओर से घिरा हो/ खूंखार दानवों से/ दानव जो दानव जैसे नहीं / भद्र मनुष्य की तरह लगते हों….यह केवल गोस्वामी के 'युद्ध' कविता की कुछ पंक्तियां हैं, जो उनकी मेधा का आभास कराने के लिए काफी हैं. केवल गोस्वामी हमारे दौर के एक समर्थ रचनाकार हैं. उनका जन्म 28 सितंबर,  1940 को झंग, जो अब पाकिस्‍तान में है में हुआ था. छोटी उम्र में ही बंटवारे और विस्थापन का दर्द झेलने वाले केवल गोस्वामी की रचनाओं में वह दर्द व संवेदना हमेशा दिखती रही. उन्होंने उपन्यास, कहानी, कविता, व्यंग्य, बाल साहित्य और समीक्षाएं भी लिखीं, पर उनकी असली पहचान एक कवि की ही है, जिनकी सहजता और विविधता के चलते वह पाठक के मर्म को बहुत करीने से छूते हैं. इन अर्थों में सही मायने में वह पाठक से सहज संवाद के कवि हैं.  

 

केवल गोस्वामी की चर्चित प्रकाशित कृतियों में कविता संग्रह- 'पहली बारिश में', 'उसकी माँ', 'बंद कमरों की संस्कृति', 'एक नदी की देहगाथा', 'सन्नाटा बुनते हुए' और 'शब्द जब बोलेंगे' शामिल है. उनका 'चक्रव्यूह' नाम से एक कहानी संग्रह, 'आस-पास की ज़मीन' और 'उसकी मां' नाम से व्यंग्य संग्रह, संपादन और अनुवाद की पुस्तक 'दुःख के दिन रात' और 'खलनायक' नाम से उपन्यास भी प्रकाशित हुआ. उनकी एक समीक्षा पुस्तक भी 'स्वातंत्रोत्तर प्रगतिशील हिंदी कहानियाँ' नाम से प्रकाशित हुई. उन्होंने 'श्रेष्ठ हिंदी कहानियाँ 1960 – 1970' का संपादन भी किया और समकालीन हिंदी साहित्य के कई बड़े लोगों की रचनाओं को जगह दी, जिसमें  रमाकांत की 'अँधेरा', दूधनाथ सिंह की 'चूहेदानी', मन्नू भंडारी की 'एक प्लेट सैलाब', विद्यासागर नौटियाल की 'एक शिकायत सबकी', ज्ञान रंजन की 'फैन्स के इधर और उधर', रमेश उपाध्याय की 'गलत-गलत', शानी की 'जनाजा', मधुकर सिंह की 'लहू पुकारे आदमी', कामतानाथ की 'मकान', रवींद्र कालिया की 'नौ साल छोटी पत्नी', काशीनाथ सिंह की 'तीन काल-कथा' और हृदयेश की 'वह ओर जगह' को शामिल किया. उन्हें उनके साहित्यिक योगदान के लिए कृति सम्‍मान, भाषा मार्तंड सम्‍मान और श्रेष्‍ठ बाल साहित्‍य सम्‍मान से नवाजा जा चुका है.