आगराः पहला 'मंतव्य' साहित्य पुरस्कार वरिष्ठ कवि असंगघोष को दिया जाएगा. इस आशय की घोषणा 'मंतव्य' पत्रिका की ओर से साहित्य के क्षेत्र में दिए जाने वाले इस पहले पुरस्कार की निर्णायक समिति में चौथीराम यादव, नाम देव, सूरज बड़त्या और हरे प्रकाश उपाध्याय शामिल थे. समिति के सदस्यों ने काफी नामों पर विचार और संवाद के बाद सर्वसम्मति से असंगघोष के पक्ष में निर्णय लिया. समकालीन हिंदी कविता में असंगघोष अपने विद्रोही तेवर और आम्बेडकरवादी चेतना के लिए जाने जाते हैं. समाज में सदियों से जिन्हें प्रताड़ना, उपेक्षा और तमाम तरह की जकड़बंदियों को झेलना पड़ा, उस श्रमशील वर्ग के संघर्ष और प्रतिरोध को अपनी कविताओं में स्वर देते हुए वे भेदभाव और पाखंड की दुनिया का पर्दाफाश करते रहे. उनकी कविताएं वर्ण आधारित समाज और धर्म को चुनौतियां देती हुईं एक समतामूलक समाज का सपना प्रकट करती हैं.असंगघोष का जन्म 29 अक्टूबर, 1962 को पश्चिम मध्य प्रदेश के कस्बा- जावद के एक दलित परिवार में हुआ था. उनके आठ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें खामोश नही हूँ मैं', 'हम गवाही देंगे', 'मैं दूंगा माकूल जवाब', 'समय को इतिहास लिखने दो', 'हम ही हटाएंगे कोहरा', 'ईश्वर की मौत', 'अब मैं साँस ले रहा हूँ' तथा 'बंजर धरती के बीज' शामिल हैं.

कवि असंगघोष त्रैमासिक 'तीसरा पक्ष' के संपादक हैं और म.प्र. दलित साहित्य अकादमी, उज्जैन पुरस्कार, सृजनगाथा सम्मान, गुरू घासीदास सम्मान, भगवानदास हिंदी साहित्य पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं. 'मंतव्य' साहित्य पुरस्कार समिति ने अपनी अनुशंसा में कहा है कि कवि अपनी कविताओं में मनुष्यता और वैज्ञानिकता की लौ प्रज्वलित करते हुए बहुत साहस और विवेक के साथ उन तत्वों का मुखर विरोध करता है, जिन्होंने अपने छद्म, दुष्चक्र, दुर्बुद्धि और पाशविक ताकत से न सिर्फ वर्चस्व कायम किया है बल्कि समता, न्याय और बंधुत्व के कालचक्र को भी बाधित किया है. एक बेहतर दुनिया की तलाश ही असंगघोष की कविताओं का मूल मंतव्य है. हम उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा करते हुए स्वयं गर्वान्वित हो रहे हैं. यह पुरस्कार उन्हें जून में मंडला में एक सादे समारोह में समर्पित किया जाएगा.