कानपुरः 8 जुलाई, 1937 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पैदा हुए हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार गिरिराज किशोर का 83 वर्ष की उम्र में हृदय गति रुकने से निधन हो गया. उनके निधन से साहित्य जगत मर्माहत है. हाल के दिनों में कई वरिष्ठ साहित्यकारों, गंगा प्रसाद विमल, स्वयं प्रकाश और कृष्ण बलदेव वैद के बाद गिरिराज किशोर के जाने को हिंदी जगत एक बड़ी क्षति मान रहा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी गिरिराज किशोर के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा है, 'गिरिराज किशोर जी के देहावसान से साहित्य जगत व सम्पूर्ण प्रबुद्ध समाज में एक निर्वात उत्पन्न हो गया है.' वह मुजफ्फरनगर से आ कर कानपुर में बसे थे. उन्होंने देह दान कर रखा था. जब वह आईआईटी कानपुर के कुलसचिव थे, तब उन्होंने आईआईटी कानपुर में 1983 से 1997 के बीच रचनात्मक लेखन केंद्र की स्थापना की और उसके अध्यक्ष रहे. जुलाई 1997 में वह रिटायर हुए. इस दौरान भी उनका अपना लेखन कार्य और महात्मा गांधी पर रिसर्च जारी रखा.
गिरिराज किशोर हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार होने के साथ-साथ कथाकार, नाटककार और आलोचक भी थे. उन्हें महात्मा गांधी के जीवन पर लिखे उपन्यास 'पहला गिरमिटिया' के लिए अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली. इस उपन्यास को उन्होंने महात्मा गांधी के अफ्रीका प्रवास से प्रेरित हो कर लिखा था. गांधी के बाद गिरिराज किशोर ने कस्तूरबा गांधी पर आधारित उपन्यास 'बा' भी लिखा. इसमें उन्होंने गांधी जैसे व्यक्तित्व की पत्नी के रूप में एक स्त्री का स्वयं और साथ ही देश की आजादी के आंदोलन से जुड़े दोहरे संघर्ष का उल्लेख किया था. गिरिराज किशोर को साहित्य और शिक्षा के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनकी अन्य रचनाओं में कहानी संग्रह 'नीम के फूल', 'चार मोती बेआब', 'पेपरवेट', 'रिश्ता और अन्य कहानियां', 'शहर -दर -शहर', 'हम प्यार कर लें', 'जगत्तारनी' एवं अन्य कहानियां, 'वल्द' 'रोजी', और 'यह देह किसकी है?' खासी चर्चित रहीं. उनके उपन्यास 'ढाई घर' को 1992 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था. साहित्य जगत से जुड़े लोगों, जिनमें ममता कालिया, उषा किरण खान, प्रेम जनमेजय, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, धीरेंद्र अस्थाना, यतींद्र मिश्र, चित्रा देसाई, ललित लालित्य, विनोद अनुपम, रत्नेश्वर सिंह शामिल हैं ने गिरिराज के निधन पर अपनी शोक संवेदनाएं व्यक्त की हैं.