बेंगलुरूः जैन संभाव्य विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के शोधार्थियों द्वारा छः दिवसीय व्याख्यान-माला का आयोजन किया गया. इस दौरान समाज, साहित्य, दर्शन, असमानता, जेंडर, पूर्वाग्रह, रूढ़िवादिता और कई समकालीन मुद्दों पर चर्चा हुई. महिलाओं का इतिहास और अर्थव्यवस्था में योगदान तथा जेंडर विमर्श पर चर्चा में डॉ अवंतिका शुक्ल ने निर्भया प्रसंग, अक्का महादेवी, मणिपुर की महिलाएं, सामंती व्यवस्था, मीराबाई, थेरी गाथा, वर्तमान समय में कोविड-19 महामारी और समकालीन हिंदी स्त्रीवादी कविता के प्रमुख स्वर जैसे विषयों पर चर्चा हुई, जिनमें रजनी शाह, डॉ अवंतिका शुक्ल, डॉ पी मैथिली राव, डॉ भंवर सिंह शक्तावत, डॉ सत्यम कुमार, डॉ नितिशा खलको, स्वप्ना चतुर्वेदी, डॉ. निरंजन सहाय, डॉ नीतिशा खलको और अजय ब्रम्हात्मज, तुलसी छेत्री आदि ने हिस्सा लिया. स्त्री विमर्श पर आधारित सत्र में डॉ श्रीनारायण समीर ने कहा कि अंग्रेजी में स्त्री विमर्श को फेमिनिज़्म आंदोलनों और फेमिनिज़्म डिस्कोर्स से जोड़ा गया, जबकि हिंदी में स्त्रीवादी और स्त्री से संबंधित रचना को ही स्त्री विमर्श समझा जाता है. पश्चिम में 1929 में वर्जिनिया वुल्फ और सिमोन द बोउआर आदि की रचनाओं से इसकी शुरुआत हुई और थिंकिंग अबाउट आदि किताबें भी छपीं. पश्चिम में नारीवादी आंदोलन, स्त्री विमर्श, लैंगिक स्वभाव और कारणों का विश्लेषण करता है.
डॉ समीर के अनुसार पश्चिमी साहित्य में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और दमन का प्रसंग दिखाई देता है. वहां का आंदोलन व साहित्य, स्त्री विमर्श घरेलू हिंसा, यौन हिंसा, प्रजनन संबंधी विचार, नौकरी के साथ समान अवसर और उन अधिकारों की मांग की व्याख्या करता है. यह आजकल के नारी आंदोलन का प्रमुख स्वर है. वर्तमान समय में स्त्रीवादी, अस्मितावादी आधुनिक हिंदी साहित्य में नई ताकत और त्वरा आई है. आधुनिक काल के प्रमुख कवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता की एक पंक्ति, 'अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी…' का उदाहरण देते हुए कुछ अन्य समकालीन कवियों की चर्चा की, जिनमें जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा तथा निराला शामिल हैं. इसके अलावा उन्होंने सबाल्टन डिसकोर्स की भी चर्चा की तथा पुरुषों के दृष्टिकोण से आलोक धन्वा की 'भागी हुई लड़कियां', गोरख पांडे के 'कैथल गांव की औरतें' पर चर्चा की. उनके अनुसार पुरुषों ने जो स्त्री अभिव्यक्ति की कविताएं लिखी हैं, वह दूर बैठ कविता है. जबकि स्त्री विमर्श पर प्रभा खेतान, सुमन राजे, अनामिका, मैत्रेयी पुष्पा, कात्यायनी,  स्नेहमय चौधरी, सुशीला टाकभैरो, रमणीका गुप्ता, मंजरी श्रीवास्तव, रंजना जयसवाल, पूर्णिमा, मनीषा कुलश्रेष्ठ और निर्मला पुतुल का अवदान प्रमुख है.