चंडीगढ़: मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी से कई बार मिलने का मौका मिला. लेकिन जब मैं दूसरी बार उनसे मिला तो मैंने उनसे पूछा कि आप देश के युद्ध हीरो हैं. आपके तीन बेटे हैं, उनमें से कोई फौज में क्यों नहीं गया? इस सवाल का मेजर चांदपुरी ने ऐसा जवाब दिया कि मैं उनकी बातों का मुरीद हो गया. यह कहना है पंजाब पुलिस के एसपी गुरजोत सिंह का, जिन्होंने लोंगोवाल युद्ध के हीरो मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की बायोग्राफी 'अंगेस्ट आल ओड्स' नाम से लिखी है. जिसमें चांदपुरी के जीवन के बारे में पूरी कहानी है. गुरजोत सिंह ने कहा कि मेरे सवाल को सुनते ही मेजर चांदपुरी ने मुझसे ही सवाल कर दिया कि आपके मम्मी-पापा भी डाक्टर हैं, आप डाक्टर क्यों नहीं बने. कभी भी मां-बाप को देखकर खुद का करियर तय नहीं होता. जो तुम्हें अच्छा लगता है उसे करोगे तो उसमें तुम सफलता भी पाओगे और खुश भी रहोगे. सिंह ने बताया कि यह बात सुनते ही मुझे लगा कि मुझे मेजर चांदपुरी के बारे में न केवल और जानना है, बल्कि लोगों को भी बताना है. क्योंकि जिस इनसान ने इतिहास बनाया हो वह अपने बच्चों के लिए ऐसी सोच कैसे रख सकता है. इसी के बाद से मैंने उनसे और उनके परिवार से मिलना शुरू किया और उस मुलाकात में मैंने उनके जन्म से लेकर 1971 भारत-पाक युद्ध के दौरान लोंगोवाल मोर्चे के पूरे किस्से भी उनकी जुबान से सुने.

एसपी गुरजोत सिंह ने बताया कि मेजर चांदपुरी ने खुद उन्हें बताया था कि कि 1965 में वह आर्मी ट्रेनिंग के लिए रूस गए थे. वहां मेजर चांदपुरी की फुर्ती को देखकर कैनेडियन सैन्य अधिकारियों ने उन्हें उनकी आर्मी ज्वाइन करने का ऑफर दिया था, जिसे उन्होंने फटाक से ठुकरा दिया. उनका कहना था कि मैं जन्म के बाद पाकिस्तान में बने एक घर को छोड़ चुका हूं और अब दूसरे को छोड़कर तीसरे में बसने की हिम्मत नहीं है. मैं जिंदा रहूंगा तो अपने देश भारत के लिए और अगर मर भी गया तो भी तिरंगे में लिपटकर मरूंगा. बायोग्राफी के पोस्टर लांच कार्यक्रम में कुलदीप सिंह चांदपुरी के बेटे हरदीप चांदपुरी ने बताया कि एमबीए की पढ़ाई के लिए मुझे अमेरिका जाना था, लेकिन मेरा वीजा रिफ्यूज हो गया. शाम के समय मैं पापा के दोस्त के पास बैठा था, जिन्होंने मुझे पूछा कि तुम्हारे अमेरिका जाने का क्या बना तो मैंने बताया कि वीजा रिफ्यूज हो गया. पापा के दोस्त बोले कि विदेश मंत्री के कार्यालय में मेरे संबंध हैं, मैं बात करता हूं, तू अमेरिका जाने की तैयारी कर. मैं उनकी बात सुनकर खड़ा ही हुआ था कि पापा ने डांटकर बोला चुपचाप नीचे बैठ जा. मैंने पूछा क्यों तो पापा बोले कि अमेरिका जाना है तो खुद के दम पर जा. मैं या कोई दूसरा सिफारिश नहीं करेगा. सिफारिश में बाहर जाने से बेहतर है कि अपने देश में रहकर दो वक्त की रोटी खाने जितना कमा ले.