नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने नेमिचंद्र जैन जन्मशतवार्षिकी पर एक परिसंवाद का आयोजन किया. स्वागत वक्तव्य देते हुए सचिव के श्रीनिवासराव ने कहा कि नेमिचंद्र जैन ऐसे रचनाकार थे, जिन्होंने बहुत सारे नए रचनाकारों को एक नई दृष्टि दी और उन्हें संस्कारित किया. उद्घाटन वक्तव्य में नंदकिशोर आचार्य ने कहा कि नेमिचंद्र जैन ने परंपरा को आलोचनात्मक दृष्टि से देखा है और नए सत्य का उद्घाटन किया है. हिंदी आलोचना ने उनके साहित्य-चिंतन और व्यावहारिक आलोचना पर ठीक तरह से ध्यान नहीं दिया है. उनकी कविताओं को लेकर और काम किए जाने की जरूरत है. विशिष्ट अतिथि के रूप में रश्मि वाजपेयी ने उनके पूरे जीवन को याद करते हुए उनकी उदारता के कई उदाहरण देते हुए कहा कि वे एक पति और एक पिता के रूप में स्त्रियों की स्वतंत्रता के प्रबल पक्षधर थे.
बीज वक्तव्य देते हुए प्रख्यात आलोचक ज्योतिष जोशी ने कहा कि नेमिचंद्र जैन सभी अर्थों में विरले व्यक्ति थे, उन्होंने हिंदी साहित्य के सभी क्षेत्रों में स्मरणीय काम किया. अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक ने कहा साहित्यिक संकीर्णता के चलते हमने नेमिचंद्र का मूल्यांकन उचित तरीके से नहीं किया है. इसके बाद प्रथम सत्र नाट्यलोचन और संस्कृति विमर्श पर था की अध्यक्षता देवेंद्रराज अंकुर ने की और हृषीकेश सुलभ, कीर्ति जैन एवं सुमन कुमार ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. अगला सत्र उनके काव्यावदान और काव्यचिंतन पर केंद्रित था जिसकी अध्यक्षता नंदकिशोर आचार्य ने की और ध्रुव शुक्ल एवं ओम निश्चल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. अंतिम सत्र कथालोचन और साक्षात्कार का था जिसकी अध्यक्षता रोहिणी अग्रवाल ने की और सत्यदेव त्रिपाठी, प्रभात रंजन एवं पल्लव ने अपने आलेख प्रस्तुत किए. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया.