नई दिल्लीः साहित्योत्सव के दौरान एक महत्त्वपूर्ण परिचर्चा 'नाट्य लेखन का वर्तमान परिदृश्य' पर केंद्रित थी, जिसका उद्घाटन वक्तव्य रामगोपाल बजाज ने दिया. कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष अर्जुनदेव चारण थे. कार्यक्रम का अध्यक्षीय वक्तव्य चंद्रशेखर कंबार ने दिया. परिचर्चा सत्र की अध्यक्षता प्रयाग शुक्ल ने की जिसमें आतमजीत, अजित राय, बलवंत ठाकुर, धर्मकीर्ति यशवंत सुमन तथा एन. एहन्जाव मेतेई ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए. प्रख्यात रंग-व्यक्तित्व रामगोपाल बजाज ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा कि जो भी कलाएं हमें बृहत्तर नहीं बनातीं वे व्यर्थ हैं. नाटक अपने में कई विधाओं को समेटे हुए है तथा उसका लेखन दलगत राजनीतिक आदि से ऊपर उठकर होना चाहिए अन्यथा वह स्थाई नहीं रहेगा और जल्द ही परिदृश्य से गायब हो जाएगा. उन्होंने नाटक को सरकारी नीतियों में शामिल करने के लिए आह्वान करते हुए कहा कि हम अपनी श्रेष्ठ नाट्य परंपरा तभी बचा पाएंगे.

 

अर्जुनदेव चारण ने कहा कि नाटककार हमेशा वर्तमान को लेकर बातचीत करता है लेकिन उसमें अतीत या भविष्य के ऐसे संकेत जरूर होते हैं जिन्हें कोई भी निर्देशक पकड़ सकता है. उन्होंने कहा कि नाट्य निर्देशकों को भी साहित्य को एक शास्त्र के रूप में पढ़ना और समझना होगा तभी वे उसके रूपांतरण और निर्देशन करते समय उसके साथ न्याय कर पाएंगे केवल यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ा नहीं जा सकता कि हिंदी में अच्छे नाटक नहीं है. अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में चंद्रशेखर कंबार ने युवा निर्देशकों द्वारा उपन्यास या कहानी का निर्देशन स्वयं करने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह बहुत गलत प्रक्रिया है और इसे रोका जाना चाहिए. क्योंकि ऐसा करके वे अपनी प्रस्तुतियों को 'विज्युली' तो प्रभावी बना लेते हैं लेकिन उसमें संवाद या नाट्य तथ्य गायब हो जाते हैं. उन्होंने थियेटर को पीपुल के लिए तथा ड्रामा को राइटर से जोड़कर देखने की अपील की.