उज्जैनः अपने अखिल भारतीय कार्यक्रम टेपा सम्मेलन के लिए मशहूर चर्चित व्यंग्यकार डॉ. शिव शर्मा नहीं रहे. 80 वर्ष की आयु में  कैंसर की बीमारी से उनका निधन हो गया. मालवा की खास व्यंग्य शैली टेपा को राष्ट्रीय ख्याति दिलाने में उनका अहम योगदान था. उन्होंने अखिल भारतीय कार्यक्रम टेपा सम्मेलन की शुरुआत लगभग पांच दशक पहले की थी. देश की कई पत्र-पत्रिकाओं में उनके व्यंग्य व लेख निरंतर प्रकाशित होते रहे हैं.  25 दिसंबर, 1938 को मध्य प्रदेश के राजगढ़-ब्यावरा में जन्मे डॉ. शर्मा ने उज्जैन को अपनी कर्मस्थली बनाया. फिर उन्होंने शासकीय माधव कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की और यहीं अध्यापक नियुक्त होकर अंततः प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत हुए. 1970 के दशक से व्यंग्य, लेखन में सक्रिय डॉ. शर्मा के चर्चित व्यंग्य संग्रहों में 'जब ईश्वर नंगा हो गया', 'चक्रम दरबार', 'टेपा हो गए टॉप', 'कालभैरव का खाता', 'अपने-अपने भस्मासुर' शामिल हैं.

डॉ. शिव शर्मा के उपन्यास 'हुजूर-ए-आला' को मालवा की रियासतकालीन परिवेश की सटीक प्रस्तुति के चलते मालवा का मैला आंचल भी कहा जाता था. स्वतन्त्रता दिवस की 50वीं वर्षगांठ पर मध्य प्रदेश शासन द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'जंगे आजादी' में भी उनके शोध ग्रन्थ को स्थान मिला था. डॉ. शर्मा ने कई वर्ष आकाशवाणी के संवाददाता के रूप में काम किया और वह राज्यस्तरीय मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार भी रहे. उन्हें माणिक वर्मा व्यंग्य सम्मान, खड़क व्यंग्य सम्मान सहित कई सम्मानों से नवाजा गया था. वह कुशल व्यवहार के धनी थे. उनके निधन की सूचना से मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि राजधानी दिल्ली तक साहित्य व पत्रकारिता जगत में शोक व्याप्त हो गया. पत्रकार -संपादक आलोक मेहता ने उन्हें पितृतुल्य बताते हुए, गहरा शोक व्यक्त किया है. विनोद अग्निहोत्री, निर्मला भुराड़िया, लालित्य ललित और ममता किरण आदि ने टेपा गुरु के निधन को व्यंग्य विधा में एक युग का अवसान बताया है.