लखनऊः सुल्तानपुर के इतिहास के बड़े अध्येता, शोधार्थी विद्वान, वकील, लेखक राजेश्वर सिंह नहीं रहे. उनके निधन से देशभर में सुल्तानपुर से जुड़े लोग आहत हैं. वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह और राज खन्ना ने अपने सोशल मीडिया पेज पर काफी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की है. इन सबने सुल्तानपुर के लिए किए गए राजेश्वर सिंह के कामों और उनके साथ बिताए अपने संस्मरणों को लिखा है. राजेश्वर सिंह ने सुल्तानपुर के इतिहास में पूरी ज़िंदगी खपा दी थी. वह इस इलाके के इतिहास के सबसे बड़े जानकार थे. 1857 की आज़ादी के लड़ाई में सुल्तानपुर के योगदान के संभवतः वह सबसे गंभीर अध्येता थे. वह जब बोलते तो सुल्तानपुर के अतीत के भूले-बिसरे पन्नों पर रोशनी बिखेरते चले जाते. हर पहलू को समेटते. कोशल राज के कुशपुर, कुशावती से होते 13 वी सदी में खिलजी के सुलतानपुर पर ठहरते. 1857 की क्रांति में पुराने सुल्तानपुर को नेस्तनाबूद किये जाने, वहां चिराग जलाने पर भी पाबंदी, जिले के अनेक ठिकानों पर आजादी के दीवानों से अंग्रेजी फौजों के युद्ध, उनका अमर बलिदान, गोमती के दक्षिण में मौजूदा नए शहर का बसाव. आजादी की अहिंसक लड़ाई में सुल्तानपुर की हिस्सेदारी, आजादी के बाद के सुल्तानपुर का सफऱ जैसे फिल्म की तरह घूमते.
85 साल के राजेश्वर सिंह ने सुल्तानपुर को मन से जिया. अतीत को खंगाला, सबको सहेजा-संजोया और शब्दों में पिरोकर एक अनमोल किताब 'सुल्तानपुरः इतिहास की झलक' लिख डाली. व्यवसाय से वह वकालत कर रहे थे. वकालत उनकी रोटी का जरिया थी, जबकि साहित्य और पत्रकारिता जीने का. पिछले कुछ वर्षों से सुल्तानपुर के नाम के बदलाव की मुहिम में लगे लोगों ने उनकी किताब का सहारा लिया. राजपूताना शौर्य फाउंडेशन के प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन राज्यपाल राम नाइक से भेंट में सुल्तानपुर के प्राचीन नाम 'कुशभवनपुर' के समर्थन में ऐतिहासिक साक्ष्यों के साथ इस पुस्तक को भी संलग्न किया था. नायक ने पुस्तक के संदर्भों को गम्भीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में सम्बन्धित अंशों को संज्ञान में लेने का आग्रह किया. 1935 में जन्मे राजेश्वर सिंह 1953 से 62 तक कलकत्ता में पढ़े. वहीं से एमए, एलएलबी किया. विश्वमित्र दैनिक में लिखा. आचार्य विष्णु कांत शास्त्री और कल्याण मल लोढ़ा से सृजन संस्कार पाए. पत्रकारिता के पांच दशकों के अधिक के सक्रिय जुड़ाव में सुल्तानपुर के राजनीतिक, सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक जीवन की हर धड़कन के गवाह रहे. उन्होंने 'पथरीला पथ' और 'अंतहीन पिपासा' जैसे चर्चित उपन्यास लिखे. उनका काव्य संग्रह 'काल की परत' भी काफी चर्चित रहा. नमन.