लखनऊः स्थानीय राय उमानाथबली सभागार में 'नये भारत का नया राष्ट्रवाद: रचनात्मक हस्तक्षेप व अपेक्षाएं' विषय पर संगोष्ठी संपन्न हुई, जिसमें हिंदी के कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने भाग लिया. वक्ताओं के मत से एक बात स्पष्ट हुई कि राष्ट्रवाद कोई नई अवधारणा नहीं है, बस इसे नया अर्थ देने की कोशिश हो रही है. लेखिका कात्यायनी ने विषय पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि आज राष्ट्रवाद का अर्थ ही बदल गया है. यह वह राष्ट्रवाद नहीं है, जिस झंडे के नीचे पूरी आजादी थी. उन्होंने कहा कि हमारे लेखक अगर सार्वजनिक जीवन नहीं जीएंगे तो यह भारतीय समाज के साथ विश्वासघात होगा. लेखक वैभव सिंह ने कहा कि भिन्नताओं-असहमतियों का आदर करते हुए राष्ट्रवाद का विकास होता है. प्रेमचंद जैसे लेखकों में राष्ट्रीय आंदोलन दिखता है. वरिष्ठ पत्रकार और कवि संजय कुंदन का कहना था कि राष्ट्रवाद सूचना क्रांति के जरिए इस्तेमाल हो रहा है. हमारा मुकाबला राजनीति से नहीं टेक्नॉलजी से है. लेखक तरुण निशांत ने कहा सामाजिक मुद्दे मजदूर, किसान के नहीं बौद्धिक वर्ग का हिस्सा हैं.

हिंदी साहित्यकार व काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर रही कवयित्री चंद्रकला त्रिपाठी ने कहा कि हमें इस दौर में भीड़ के अंधविश्वास का हिस्सा नहीं बनना है. कथाकार अखिलेश ने कहा कि मौजूदा निजाम न्यू इंडिया के निर्माण की बात कह रहा है. पर नए भारत के निर्माण की बात नेहरू और राजीव गांधी ने भी की थी, लेकिन उसे मिलजुलकर बनाया गया. कार्यक्रम के दौरान डॉ कालीचरण सनेही, अनिल त्रिपाठी, कंवल भारती, बजरंग बिहारी तिवारी, शशिकला राय, मुन्ना तिवारी, वैभव सिंह और डॉ. राजकुमार आदि ने भी अपने विचार रखे.