नयी वाली हिंदी के प्रमुख लेखक दिव्य प्रकाश दुबे की किताब ‘अक्टूबर जंक्शन’ आ रही है। इसी संदर्भ में उनसे किताब सहित नयी हिंदी को लेकर बातचीत की पीयूष द्विवेदी ने।
सवाल – अपनी नयी किताब अक्टूबर जंक्शन पर कुछ प्रकाश डालिए। नयी हिंदी में अबतक विषय-वस्तु के स्तर पर ताजगी का अभाव दिखा है, क्या ये किताब इस अभाव को कुछ भर पाएगी?
दिव्य – अगर एक लाइन में अक्टूबर जंक्शन की कहानी कहनी हो तो वो ये होगी कि हम सभी की दो जिन्दगियां होती हैं, एक वो जो हम रोज़ जीते हैं दूसरी वो जो हम रोज़ जीना चाहते हैं। अक्टूबर जंक्शन उस दूसरी ज़िन्दगी की कहानी है।
इसमें फॉर्मेट के हिसाब से एक नया प्रयोग किया है कि ये कहानी मोटे तौर पर केवल दस दिनों की है, लेकिन वो दस दिन दस साल में बिखरे हुए हैं। यानि कि दस अक्टूबर 2010 से लेकर कहानी दस अक्टूबर 2020 तक जाती है। मुझे याद नहीं पड़ता कि इस तरह का कोई प्रयोग हिंदी में इधर हुआ है। मुझे नहीं मालूम कि अभाव को भरेगी या नहीं, लेकिन अपनी हर नयी किताब के साथ मैं कुछ न कुछ नए प्रयोग करता रहा हूँ और उम्मीद है कि आगे भी करता रहूँगा।
सवाल – नयी हिंदी क्या है? किस मामले में नयी है ये?
दिव्य – नयी वाली हिंदी उस बाप की तरह है जो अपने जवान बेटे या बेटी से दोस्ती करना चाहता और उस दोस्ती की चाहत में वो अपने बेटे और बेटी की दुनिया में घुसकर उससे वैसे ही हाथ मिलाना चाहता है जैसे कि वो उसका कोई बिछड़ा हुआ दोस्त हो। मनोहर श्याम जोशी की एक लाइन थी कि ‘हिंदी में पीठ ठुकवाने के लिए लिए पैर दबाने पड़ते हैं’ तो इस परिप्रेक्ष्य में नयी वाली हिंदी पीठ तो ठुकवाना चाहती है, लेकिन पैर दबाकर नहीं, बल्कि अपनी योग्यता से।
सवाल – नयी हिंदी की किताबें दो सौ पन्ने से ऊपर क्यों नहीं बढ़तीं? कोई प्रकाशकीय दबाव है या रणनीति?
दिव्य – पूरी दुनिया जिस तेज़ी से बदल रही है उसमें आप देखेंगे कि कोई विडियो भी जो तीन से पांच मिनट से ज़्यादा होता है, उसको देखने वाले उतने ही कम होते जाते हैं। असल में लोगों का अटेंशन स्पैन बहुत कम हुआ है। इसलिए मैं इसको एक रणनीति की तरह लेता हूँ कि अगर एक दिन की छुट्टी में आप मेरी किताब ख़त्म नहीं कर पाएंगे तो किताब अधूरी रह जाएगी। मैं ये मान कर चलता हूँ कि किसी के पास आप्शन हो कि वो मॉल जाकर एक फिल्म देख ले या घर बैठकर मेरी किताब पढ़ ले तो दोनों में बराबर समय ही लगे।
सवाल – जागरण बेस्टसेलर सूची को कैसे देखते हैं?
दिव्य – इसमें कोई शक नहीं है कि ये एक बहुत अच्छी पहल है लेकिन इस पहल को बहुत आगे ले जाने की ज़रूरत है। मुझे लगता है कि हर तीन महीने की बजाये अगर ये साल भर में या 6 महीने में आये तो इसका असर बढ़ेगा और किताबों का मूल्यांकन भी सही से हो सकेगा। जागरण चूँकि बहुत बड़ा ग्रुप है, इसलिए उनको इस दिशा में कोशिश ज़रुर करनी चाहिए कि ज़्यादा से ज़्यादा लोग किताबें पढ़ें। उस दिशा में अगर कोई कोशिश नहीं होती तो कुछ सालों में बेस्टसेलर लिस्ट का कोई बहुत मतलब नहीं रह जायेगा।
सवाल – नए-पुराने सभी में प्रिय लेखक-लेखिका?
दिव्य – पुराने : राही मासूम रज़ा, मनोहर श्याम जोशी, कमलेश्वर।
नए : सत्य व्यास, बलराम कावंट, प्रियंका दुबे।