नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन ने इंडिया हेबिटेट सेंटर में नमिता गोखले के उपन्यास 'राग पहाड़ी' पर बातचीत का आयोजन किया, जिसमें लेखिका नमिता गोखले और अनुवादक पुष्पेश पन्त से आलोचक संजीव कुमार ने बातचीत की. सूत्रधार के रूप में संजीव कुमार का कहना था, "यह उपन्यास इतिहास की तरह धीरे-धीरे खुलता है और तिथियों, किवदंतियों से गुज़रते हुए कब यह औपन्यासिक कृति में बदल जाता है इसका एहसास नहीं होता. यह नमिता के लेखन की ख़ासियत है." लेखिका नमिता गोखले ने कहा, "इस उपन्यास को लिखने में मुझे 12-14 वर्ष लग गये. बाकी पुस्तकों के कारण इसके लिए कम समय निकाल पाती थी. यह कहानियां  चित्रकारी के रंग और संगीत के स्वर एक अद्भुत संसार की रचना करते हैं, जहां मिथकपुराण, ऐतिहासिकवास्तविक और काल्पनिक तथा फतांसी में अंतर करना असंभव हो जाता है. यह कहानी है शाश्वत प्रेम की, मिलन और बिछोह की, अदम्य जिजीविषा की."
प्रोफ़ेसर पुष्पेश पंत जिन्होंने हिंदी में इसका अनुवाद किया है, ने अनुवाद की कठिनाइयों पर बोलते हुए कहा, "इस उपन्यास में पहाड़ के सारे ताने-बाने हैं, जो पहाड़ को पूरे देश से जोड़ती है, इसमें प्रकति के बदलते चित्र, संगीत, जीवन और पहाड़ की खुशबू निहित है, अनुवाद करते हुए मुझे कभी नहीं लगा कि मैं किसी पुस्तक का अनुवाद कर रहा हूं. यह  मेरे लिए गौरव के बात थी क्योंकि मैं इन्हीं पहाड़ों में पला-बढ़ा हूं और पहाड़ों की संस्कृति और रीति रिवाजों से परिचित हूं. इस उपन्यास में जिस तरह से पहाड़ की खूबसूरती एवं जीवन को दर्शाया गया है, मुझे लगा कि काश यह पुस्तक मैंने लिखी होती." इस अवसर पर रंगकर्मी नेहा राय एवं सेंसर बोर्वाड की सदस्य और अभिनेत्री वाणी त्रिपाठी  त्रिपाठी ने पुस्तक का अंशपाठ भी किया. याद रहे कि 'राग पहाड़ी' पुस्तक नमिता गोखले की अंग्रेजी किताब, 'थिंग्स टू लीव बिहाइंड' का हिंदी रूपांतर है