हाल ही में कवि श्रीधर करुणानिधि का पहला काव्य -संग्रह 'खिलखिलाता हुआ कुछ' साहित्य संसद प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। इसके पहले श्रीधर की किताब 'वैश्वीकरण में हिंदी का बदलता स्वरूप' प्रकाशित हो चुकी है ।
सुप्रसिद्ध कवि और पटना विश्विद्यालय में हिंदी के प्रोफ़ेसर रहे स्व सुरेंद्र स्निग्ध ने इस कविता पुस्तक का ब्लर्ब लिखा था। स्व सुरेंद्र स्निग्ध ने लिखा था "यह कविता संकलन, कवि का समकालीन हिंदी कविता के लौहद्वार पर दस्तक है। खिच्चा कवि की ऐसी रचना जो दूध से भरे हुए अन्न के खिच्चा दाना की तरह हो, जाहिर है दूध से भरे कच्चे दाने की अपनी खुशबू होती है और यह खुशबू दूध के उफान को दिग-दिगंत तक फैलाती है।" स्निग्ध जी ने आगे टिप्पणी की थी "कवि का न कोई अतिरिक्त आग्रह है न महत्वाकांक्षाओं की उड़ान। किसी नन्हें शिशु की खिलखिलाहट की तरह है ये कविताएं।" इस संग्रह में प्रकाशित 'खिलखिलाता हुआ कुछ' कविता की चंद पंक्तियां –
शरीर को गुदगुदाना
बच्चों के गाल पर दाढ़ी गड़ाना
और फिर सुनना एक मासूम खिलखिलाहट भी
एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
इस संग्रह में अनेक ऐसी कविताएं हैं जिनमें कवि की कोमल भावनाओं को अभिव्यक्ति मिली है। 'छुईमुई', 'प्यार के दूधिया दाने', 'बड़ी घुमक्कड़ है रात' ऐसी ही कविताएं हैं। हिंदी के युवा आलोचक व केंद्रीय विश्विद्यालय, गया में हिंदी के प्राध्यापनक योगेश प्रताप ने श्रीधर की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इससे समकालीन हिंदी कविता को विस्तार मिला है। अपने तरीके की गहराई और दृढ़ता भी उन की कविताओं में व्याप्त है। इसलिए इस संग्रह की कविताओं का स्वाद भी अलग है। संवेदनात्मक धरातल पर ये कविताएँ कई बार मन के अछूते कोनों को भी स्पर्श करती हैं।" जैसे 'शुक्रिया ऐ नींद' की पंक्तियां :
तुम आ जाती हो
फिर भागना मुश्किल हो जाता है
उन ताजा कोंपलों को देख
जो तुम्हारी देह की खुशबू से जन्म लेते हैं
लाल-लाल दुधमुंहे बच्चेकी तरह
प्यारे और खूबसूरत…
जिसकी सूरत देखकर
गुजारी जा सकती है जिंदगी.
श्रीधर की कविताओं पर गणेश गनी कहते हैं " श्रीधर कविता लिखते समय तीन चीजें- चांद, चिड़िया और भूख एक साथ अपने सामने रखने का जादू अच्छे से जानते हैं। कवि जब ऐसा कुछ करता है तो पाठक अचम्भित रह जाता है। कविता में वो चीजें दिखने लगती हैं जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की होती है। अन्न का दाना फुदकने लगे चिड़िया जैसे, चिड़िया हंसने लगे चाँद जैसे तो समझो कि चिड़िया की चोंच में दबा दाना चाँद से बड़ा है।"
अपनी छत से जब भी देखो
लगता है
लटका है चाँद
घर से सटे ठूँट गाछ से
गोल कोंहड़े-सा।