नई दिल्लीः रामविलास शर्मा और नामवर सिंह को किसी अलग पहचान की जरूरत नहीं है. इन दोनों ही विराट शख्सियतों के कृतित्व की विकास–यात्रा में एक–दूसरे की अपरिहार्य भूमिका और उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है. यदि नामवर सिंह नहीं होते तो सम्भवत: रामविलास शर्मा के कृतित्व की विशिष्टता, उनकी उपलब्धि और मूल्यांकन कुछ और प्रतीत होते. उसी तरह रामविलास शर्मा की अनुपस्थिति में नामवर सिंह का व्यक्तित्व और कृतित्व शायद कुछ और प्रतीत होता. रामविलास शर्मा और नामवर सिंह जीवन, संस्कृति, साहित्य और राजनीति से जुड़ी यात्रा में 'हमराही' से हैं. दोनों एक–दूसरे के चिन्तन और समालोचना को गहराई से प्रभावित करते प्रतीत होते हैं. शीर्षस्थ समीक्षकों ने एक–दूसरे को प्रभावित करने के साथ–साथ एक–दूसरे का मूल्यांकन भी किया है. सच तो यही है कि रामविलास शर्मा के कृतित्व, उपलब्धि, प्रासंगिकता और सीमाओं का बोध साहित्य–जगत को लगभग उतना ही है, जितना नामवर सिंह ने अपनी समीक्षा से प्रस्तुत किया है.
यह तथ्य है कि आज भी हम रामविलास शर्मा के कृतित्व को '…केवल जलती मशाल' और 'इतिहास की शव–साधना' के दो ध्रुवान्तों के मध्य ही विश्लेषित करने को मजबूर हैं! रामविलास शर्मा के सन्दर्भ में यह नामवर सिंह की समीक्षा की अपरिहार्यता और केन्द्रीयता का दुर्निवार तथ्य और प्रमाण हैं. राजकमल प्रकाशन ने हिंदी साहित्य में आलोचना से जुड़ी इन शख्सियतों को अपने प्रकाशन में एक साथ ला दिया है. रामविलास शर्मा नाम से यह किताब नामवर सिंह द्वारा रचित है. खास बात यह कि रामविलास शर्मा को समीक्षित करने के क्रम में नामवर सिंह की प्रतिभा के चलते यह पुस्तक संस्कृति, भारतीयता, साहित्य, आलोचना, विचारधारा और अन्तत: जीवन को समीक्षित करनेवाली अपरिहार्य एवं अविस्मरणीय समालोचना पुस्तक प्रतीत होती है.
पुस्तकः रामविलास शर्मा
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
लेखक : नामवर सिंह
मूल्य : 695