नई दिल्ली, 21 जुलाई, आज उमाशंकर जोशी का जन्मदिन है. यों तो वह गुजराती के साहित्यसर्जक थे, पर हिन्दी से लेकर दूसरी समस्त भारतीय भाषाओं में भी उनकी रचनाएं गढ़ी, पढ़ीं गईं. इस लिहाज से उमाशंकर का आगमन गुजराती साहित्य की ही नहीं,भारतीय साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है. उनके सर्जन और चिंतन की प्रवृत्ति ने जीवन कला और कविता के अनेक आयामों के दर्शन कराए हैं. इनका उपनामवासुकीथा और उन्हें 1967 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी समालोचना कविता श्रद्धा के लिए साल 1973 का गुजराती भाषा का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला. उमाशंकर जोशी का जन्म गुजरात के साबरकांठा ज़िले के एक गांव में 21 जुलाई ,1911 ई. को हुआ था. उनकी औपचारिक शिक्षा कई खंडों में पूरी हुई. 1930 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने विद्यालय छोड़ दिया था, पर 1936 में मुंबई विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल की.

उमाशंकर जोशी प्रतिभावान कवि और साहित्यकार थे. 1931 में प्रकाशित काव्य संकलनविश्वशांतीसे उनकी ख्याति एक समर्थ कवि के रूप में हो गई थी. काव्य के अतिरिक्त उन्होंने साहित्य के अन्य अंगों, यथा कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना, निबंध आदि को भी पोषित किया. आधुनिक और गांधी युग के साहित्यकारों में उनका शीर्ष स्थान है. जोशीजी अध्यापक और संपादक रहे. वे गुजरात विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष थे. फिर वहां के वाइस चांसलर भी बने. उन्हें राज्यसभा का सदस्य नामजद किया गया था।. साहित्य अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया. 1979 में वे शांतिनिकेतन के विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त किए गए. उन्हें अनेक विश्वविद्यालयों ने डीलिट्. की मानद उपाधियां दीं.

वह मूलतः कवि व शिक्षक थे, पर उन्होंने नाटक लिखे, कहानियां लिखीं, उपन्यास पर भी हाथ आज़माया, अनुवाद किए औरसंस्कृतिका संपादन किया. उनकी प्रमुख कृतियां हैं- विश्वशांति (6 खंडों में) गंगोत्री, निशीथ, गुलेपोलांड, प्राचीना, आतिथ्य और वसंत वर्ष, महाप्रस्थान (काव्य ग्रंथ), अभिज्ञा (एकांकी); सापनाभरा, शहीद (कहानी); श्रावनी मेणो, विसामो (उपन्यास); पारंकाजण्या (निबंध); गोष्ठी, उघाड़ीबारी, क्लांतकवि, म्हारासॉनेट, स्वप्नप्रयाण (संपादन).विश्वशांतिमें अहिंसा और शांति के लिए गांधीजी के प्रयत्नों की महिमा का वर्णन है. इसे गुजराती काव्य में नए युग का प्रवर्तन माना जाता है.

उनके जन्म दिन पर उनकी कविता 15 अगस्त 1947 से- जिस दिन का हम इंतजार कर रहे थे

वह तुम हो ? आओ.

जिसकी उषा का आँचल दुग्ध धवल शहीदों -सा

पवित्र रक्त से हुआ रंजित , वह तुम हो? आओ.

उदित हुए तुम निष्प्रभ चाहे आज

मेघाच्छन्न नभ में ,

पुरुषार्थ के प्रखर प्रताप से मध्याह्न तुम्हारा दीप्त हो,

भव्य तपोदीप्त.

हजार बार हँसना चाहूँ ,

हृदय में खुशाली नहीं. 

प्रभु व्यथित उर में , तिनका एक आस का दे !

चाहे न कुछ दे सके , जरा आत्मश्रद्धा तू दे !