नई दिल्लीः साहित्य अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह के अवसर पर 'पठन-पाठन की रुचि : नई दिशाएं' विषयक परिसंवाद का आयोजन किया गया. आभासी मंच पर आयोजित इस संगोष्ठी में भारतीय जनसंचार संस्थान के निदेशक संजय द्विवेदी; तकनीकी विद बालेंदु शर्मा 'दाधीच'; लेखक पंकज चतुर्वेदी; कवि एवं कला आलोचक राजेश कुमार व्यास आदि ने भाग लिया. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव का लिखित स्वागत-भाषण साहित्य अकादमी के हिंदी संपादक एवं संचालक अनुपम तिवारी ने प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी में पठन-पाठन की रुचि जाग्रत करने के लिए नए तकनीकी माध्यमों के सहारे नए विषय भी सोचने होंगे. राजेश कुमार व्यास ने अपने वक्तव्य में कहा कि तकनीकी माध्यमों ने पाठ्य-पुस्तकों को बड़े स्तर पर सर्वसुलभ तो बनाया है, लेकिन यह कहना गलत होगा कि लोगों में पुस्तकें पढ़ने की प्रवृत्ति कम हुई है. उन्होंने समीक्षा या सोशल मीडिया में कुछ विशेष पुस्तकों को जानबूझ कर बेस्ट सेलर सिद्ध करने की प्रवृत्ति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किताबों की दुनिया में अच्छा विषय ही टिकता है. अतः इस तरह का प्रचार-प्रसार निरर्थक है. उन्होंने साहित्य अकादमी और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा अच्छी और सस्ती पुस्तक प्रकाशित करने की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसी तरह के प्रयास कई अन्य संस्थाओं/प्रकाशकों को करने होंगे. प्रख्यात पत्रकार एवं भारतीय जनसंचार के निदेशक संजय द्विवेदी ने कहा कि पुस्तकें कठिन समय में उम्मीद लेकर आती हैं और पठनीयता पर कहीं कोई संकट नहीं है. उन्होंने मुद्रित पुस्तकों की पहुँच बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों की चर्चा की. उन्होंने भाषायी प्रकाशन को महत्त्व देने और पुस्तकालयों के रख-रखाव को बेहतर बनाने की आवश्यकताओं पर भी जोर दिया.
बालेंदु शर्मा 'दाधीच' ने कहा कि तकनीक के कारण एक नया पाठक वर्ग तैयार हुआ है और उसकी पाठकीय प्रवृत्तियों में भी बदलाव आया है. उन्होंने मोबाइल और इंटरनेट की पहुंच के आंकड़े देते हुए कहा कि पुस्तकों की दुनिया अब आम पाठकों के लिए भी खुल गई है और उसका दायरा सीमित नहीं है. डिजिटल माध्यम पर उपलब्ध सामग्री एक तो सदा के लिए उपलब्ध है, दूसरा बहुत कुछ वह निशुल्क भी उपलब्ध है. अतः वह समय और देश की सीमाओं से भी पार जाती है. डिजिटल माध्यम के आने से साहित्य सृजन, प्रकाशन और वितरण का लोकतंत्रीकरण हुआ है. पंकज चतुर्वेदी ने बाल साहित्य की पुस्तकों और उनके प्रकाशन पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि बच्चे भी तकनीकी ज्ञान से अछूते नहीं है लेकिन उन्हें पठन-पाठन के लिए स्टीरियो टाइप कथा कहानियों से हटकर कुछ नया देने की ज़रूरत है, जिससे वे पठन-पाठन का नैसर्गिक आनंद ले सकें. उन्होंने कहा कि पुस्तकें केवल नौकरी पाने के लिए नहीं बल्कि पढ़ने का सुख प्राप्त करने के लिए होनी चाहिए. लेखक प्रकाशकों को बच्चों के सामने नए जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए कार्य करना होगा. अन्य वक्ताओं का भी मत था कि  बेहतर बाल साहित्य के साथ-साथ हमें कथेतर विधाओं पर भी काम करने की जरूरत है. इसी तरह पुस्तकों में रुचि जगाने के लिए लेखकों को विषयों की विविधता लानी होगी और किसी विशेष विचारधारा के अनुसार एजेंडाबद्ध लेखन से बचना होगा. वर्तमान लेखकों को अपने लेखन में युवाओं की आकांक्षाओं और उम्मीदों को प्रतिबिम्बित करना होगा, तभी एक बड़ा नया पाठक वर्ग तैयार होगा