नई दिल्ली: 'हिंदी साहित्य का इतिहास अध्ययन की नई दृष्टि' व्याख्यान माला के तहत वाणी प्रकाशन के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर 'नई कविता एक पुनर्विचार' विषय पर वक्तव्य देते हुए बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ से जुड़े हिंदी विद्वान डॉ सर्वेश सिंह ने अपनी बात रखी और अपने वक्तव्य से श्रोताओं को नई कविता के पुनर्विचार के विभिन्न बिंदुओं की तरफ ले गए. उनका कहना था कि प्रयोगवाद अपने संतुलन में नई कविता बन जाती है. नई कविता का विमर्श और उसकी आलोचना के केंद्र में सिर्फ गजानन माधव मुक्तिबोध हैं, जबकि उसी दौर के अन्य कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, गिरिजा कुमार माथुर, भारत भूषण अग्रवाल, पंडित भवानी प्रसाद मिश्र, कुंवर नारायण, धर्मवीर भारती की कविताओं को वह महत्त्व नहीं मिला जैसा उन्हें मिलना चाहिए.
डॉ सर्वेश सिंह का कहना था कि नई कविता का मुहावरा रस सिद्धांत के खिलाफ खड़ा किया गया. नई कविता की अगर प्रतिनिधि कविता 'अंधेरे में' है तो उसी दौर की 'अंधा युग और 'आत्मजयी' जैसी कविता भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण हैं. उनका कहना था कि नई कविता पर नामवर सिंह की पुस्तक 'कविता के नए प्रतिमान 'के साथ ही बाद के दौर में जो आलोचनात्मक पुस्तकें आई उस पर हमारा ध्यान जाना चाहिए. वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल के अनुसार वाणी डिजिटल के तहत चार भागों में शिक्षा, सरोकार, गोष्ठी और पुस्तक पर ऑनलाइन कार्यक्रम की यह व्याख्यान माला उनके प्रकाशन समूह की ओर से हिंदी साहित्य के इतिहास को जानने, परखने की एक सार्थक और अति आवश्यक पहल है.