नई दिल्लीः लेखक, पत्रकार धीरेन्द्र अस्थाना के पास किस्सों का पिटारा है. उन्हें कई साहित्यकारों के गुण-धर्म पर इतने मज़ेदार किस्से मालूम हैं कि कहानी से कम नहीं लगते. लॉकडाउन के दौर में राजकमल प्रकाशन के लिए मुंबई से फ़ेसबुक लाइव करते हुए उन्होंने अपनी आत्मकथा 'जीवन का क्या किया' के जरिए ममता कालिया, रविन्द्र कालिया, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, नागार्जुन, राजेन्द्र यादव और अन्य कई साहित्यकारों के किस्से सुनाए. उन्होंने बताया कि दिनमान पत्रिका का पता दस दरियागंज एक एड्रेस नहीं, ब्रांड था. अपनी दिल्ली से मुंबई की जीवन यात्रा पर बात करते हुए उन्होंने कहा, मायानगरी के बारे में भ्रांति है कि यहां आम लेखक की कलम घिस जाती है, लेकिन मेरे जीवन की कहानी यहीं से शुरु होती है. निदा फाज़ली के साथ बिताए पलों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि निदा फाज़ली से हमेशा नई किताब, घटना या संस्मरण के बारे में जानकारी मिलती थी. 

धीरेन्द्र अस्थाना ने बताया कि भीष्म साहनी अपनी आत्मकथा 'आज के अतीत' में एक किस्सा सुनाते हैं. किस्सा हिन्दी साहित्य के दो महत्त्वपूर्ण स्तंभ या यूं कहें कि गुरू और शिष्य से जुड़ा है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में एक शाम हजारीप्रसाद द्विवेदी और नामवर सिंह टहलते हुए वापिस घर लौट रहे थे. हजारी प्रसाद द्विवेदी के घर के दरवाज़े पर एक पैकेट रखा था. पैकेट देखकर अंदाज़ा लगाना आसान था कि इसमें किताबें हैं. दरवाज़े तक पहुंचने से पहले ही दोनों लपक कर भागे उस पैकेट को उठाने के लिए. जिसने पैकेट पहले लिया वही पहला हक़दार होगा किताब पढ़ने का. इस किस्से से दोनों के भीतर किताबों के प्रति जो प्रेम था उसका तो पता चलता ही है,  साथ ही दोनों लेखकों की सहजता का भी पता चलता है. याद रहे कि राजकमल प्रकाशन रोज सोशल मीडिया के पेज पर लाइव रहकर लेखकों और साहित्यकारों की मुलाकात पाठकों से करा रहा है. इसी सिलसिले में कवि प्रभात ने अपनी किबात 'जीवन के दिन' से बहुत ही सुंदर कविताओं का पाठ किया, तो साहित्यकार, कथाकार चंद्रकान्ता ने लाइव बातचीत में कश्मीर के अपने घर की यादों को लोगों से साझा किया. ख्याल रहे कि उन्होंने उपन्यास 'एलान गली ज़िन्दा है' और 'कथा सतीसर' कश्मीर पर ही लिखे हैं.