बिहार के कुमार  सरोज आज कला की दुनिया मे एक सुपरिचित नाम है।  बड़ौदा के प्रसिद्ध कला संस्थान से जुड़े रहने वाले सरोज थोड़े आध्यामिक रुझानों वाले कलाकार हैं। पेंटिंग के साथ इनकी साहित्य में भी गहरी रुचि रही है।   समकालीन कला परिदृश्य पर उनके विचार 


मेरा  जन्म  एक मध्यवर्गीय  परिवार  में हुआ है | आरंभिक  कला शिक्षा  भागलपुर  कलाकेंद्र  से फिर  बनारस  हिन्दू  विश्व विद्यालय  से  स्नातक और फिर बड़ौदा के प्रसिद्ध  कला संस्थान  फैकल्टी  ऑफ   फ़ाईन आर्ट  से क्रिएटिव  आर्ट में एम .ए .तक की शिक्षा प्राप्त   की | भागलपुर शहर  ने मुझे साहित्य व् कला के प्रति    जिज्ञासु बनाया । 

मेँ मुझे देवी  –  देवताओ  अथवा नायक  –  नायिकाओ   के चित्र /मूर्ति बनाने  में आनंद  प्राप्त होता था |  इस जगत के सूक्ष्म  निरीक्षण  के बाद ही मनुष्य  अथवा मनुष्येतर   जीवों या  वस्तुओं की आकृतिरंगभंगिमा   इत्यादि का सार्थक व साकार  रूप निर्मित  किया जा  सकता है ।

हमारे यहां कला का बाजार भी सीमित  है कुछ को छोड़  दिया  जाये तो कमोबेश  हमारे  समाज  में आज भी लोगों का  कला के प्रति उत्साह का भाव नहीं है  क्योंकि आजादी के इतने साल बाद भी हम अपने समाज मेंकला क्या  ? कला क्यों  ? इत्यदि  मूलभूत  बातें बताने  या प्रशिक्षित  करने में नकामयाब  रहे है फलस्वरूप समाज हमारी  रचनात्मक   गतिविधिओं  को एक बेवकूफ  गतिविधि के तहत   आँककर  देखने के आदि है लोगों को बुनियादी  दृश्य शिक्षा कैसे प्राप्त हो इसके लिए वातावरण तैयार करने पर  ध्यान देने की जरूरत है |

मैं भारतीय मंदिर  मूर्तिकलालोक और  पारंपिक  कला की महाकाव्यात्मक गुणवत्ता   से प्रेरित हूँ साथ ही साहित्यख़ासकर आधुनिक और समकालीन हिंदी साहित्य से भी प्रेरणा पाता हूँ।  इसके अतिरिक्त   वॉल्टेर डी मारिया,  जीन बुफेट इब्राम लास्सोइसामू   नोगुची डेविड   स्मिथ जोसेफ़ बुयस ली  क्रासनेर ,  रोबर्ट  मदरवेल ,  जैक्सन पोलाक  पोलॉकमार्क  रोथ्को ,  पॉल   क्ली ,  आदि के कार्य शैली  को पसंद  करता हूं,अभिव्यक्तिवाद  और अवधारणवाद   मुझे अच्छा लगता  है. कई जीवित कलाकार हैं जिसे मैं पसंद  करता है ,जैसे अनीस कपूर डेमिन हर्स्ट ध्रुव मिस्त्री  , सुबोध  गुप्ता ब्रूस  नॉमनतारा  डोनोवन मार्क क्वीन   इत्यादि 

बिहार के लोक अथवा पारम्परिक  कलाओं की अपनी पहचान  है अट्ठारवीं  और उन्नीसवीं  शताव्दी  में बिहार खासकर पटना  कला का केंद्र  रहा है ,जिसे हम पटना कलम  या कम्पनी  पेंटिंग  के नाम से जानते  है लेकिन एक समय  कला का केंद्र  माना जाने वाला बिहार अन्य क्षेत्रों  की  भाँति पिछड़ता  गया हाँ पिछले  कुछ  सालों से यहां   समकालीन कला के प्रति समाज में एक प्रकार  की जागरूकता दिखाई   देने लगी  है सरकार में बैठे  कुछ लोगो के सकारात्मक पहल  से यहाँ कलाकारों के बीच   एक आशा का भाव पैदा  हुआ है बाहर के लोगों का सोच और व्यवहार  यहाँ के कलाकारों के प्रति थोड़ी  बदली  जरूर है। सरकार के साथ यहां के कलाकारों कला  रसिकोंलेखकों बुद्धिजीवियों एवं समाज के प्रबुद्ध   वर्गों   को एक साथ एक मंच  पर समकालीन कला के उत्थान   के लिए आगे आना चाहिए 

(अनीश अंकुर से बातचीत पर आधारित)