नई दिल्लीः भारत चीन सीमा पर लद्दाख की गवलान घाटी में हुए देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए सौनिकों को समर्पित एक कवि सम्मेलन 'कलम की हुंकार' शीर्षक से संपन्न हुआ. 'माटी की सुगंध' समूह ने इस सम्मेलन का ऑनलाइन आयोजन किया, जिसमें दिल्ली, कानपुर, अलवर, शामली, अलीगढ़, झज्जर, मेरठ आदि स्थानों से देश के तमाम प्रतिष्ठित व युवा कवियों ने हिस्सा लिया. इन कवियों ने ओजस्वी काव्य पाठ से चीन को ललकारते हुए शहीदों को श्रद्धांजली दी तथा देश को राष्ट्र भक्ति का सन्देश दिया. कवि सम्मेलन का शुभारंभ सुषमा सवेरा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ. फिर सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने पढ़ा, 'जो भी शहीद होगा, हरगिज नहीं मरेगा. सौ-सौ नमन शहीदो! यह जग तुम्हें करेगा…'
डॉ जयसिंह आर्य ने देश्भक्ति की जो लौ लगाई उसके बाद तो एक ज्वार सा आ गया. आजाद कानपुरी ने पढ़ा, 'अब तो आंधी को न्योता दिया जायेगा, फिर चरागों को रोशन किया जायेगा…नहीं रोयेंगे हम, बस रुलायेंगे हम, अब ना कोई भी आंसू पिया जायेगा…' निवेदिता चक्रवर्ती ने सुनाया, 'मां की लाज बचाते तुम विदा हो गये हो, देश रक्षा के हवन में समिधा हो गये हो…' पवन कुमार पवन ने अपने तेवर में पढ़ा, 'वीरों का ख़ून बहा है जो, उसकी सौगंध उठा लो तुम, दुश्मन के नाक रगड़ने तक, अब युद्ध विराम नहीं करना…' इनके अतिरिक्त डॉ सीमा विजयवर्गीय, प्रीतम सिंह प्रीतम, सुनील टम्मी, तेजवीर सिंह, खेमचन्द सहगल, रामनिवास भारद्वाज ज़ख्मी, विनोद शंकर पाण्डेय और सरिता गुप्ता दिल्ली ने भी काव्य पाठ किया. कवि सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ जयसिंह आर्य ने की. मुख्य अतिथि आजाद कानपुरी, विशिष्ट अतिथि निवेदिता चक्रवर्ती और पवन कुमार पवन रहे.  संचालन डॉ सीमा विजयवर्गीय ने किया.