चंडीगढ़ः कोरोना न होता तो रामधारी सिंह 'दिनकर' की पुण्यतिथि पर कई कार्यक्रम होते, पर इस महामारी ने भी राष्ट्रकवि की याद को लोगों के दिलोदिमाग से धूमिल नहीं किया है. साहित्यकारों और हिंदी सेवियों ने अपनी-अपनी तरह से दिनकर को याद किया. साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि दिनकर की कविता में राष्ट्रप्रेम तो था ही, साथ ही राजनीतिक मुद्दों पर कटाक्ष भी. उन्होंने आम लोगों के विश्वसनीय प्रवक्ता की भूमिका भी अदा की. माधव ने कहा कि दिनकर बहुत बड़े कवि थे. हालांकि कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने संस्कृति के चार अध्याय की रचना भी की. ये रचना इतनी प्रसिद्ध हुई कि इसमें उनकी भव्यता पता चलती है. इसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला. इसकी भूमिका खुद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखी. बौद्धिक चेतना पर आधारित इस किताब में भारतीय संस्कृति को खूबसूरती से बयान किया गया.
दिलचस्प बात यह है कि भारतीय समाज, भारतीयता और भारतीय मानसिकता को समझने के लिए उससे बड़ा कोई ग्रंथ नहीं. इसके अलावा उनकी दो रचनाएं कुरुक्षेत्र और उर्वशी काफी प्रसिद्ध हुईं. माधव ने कहा कि दिनकर के काव्य -ग्रंथ कुरुक्षेत्र में समाज चिंतन को बखूबी दिखाया गया है. इससे प्रभावित होकर विश्व भर के मार्क्सवादी विचारधारा के लोगों ने इसे मार्क्सवाद की गीता कहा था. हालांकि दिनकर का मार्क्सवाद से कोई लेना देना नहीं था. इसके अलावा उर्वशी को काम-आध्यात्म का सबसे बड़ा ग्रंथ माना गया. जब देश और साहित्यिक वर्ग, साहित्य के वाद में बंटा था, तब दिनकर जैसे कवि साहित्य के मुख्य स्वर रहे, जो राष्ट्रीयता के मूल को अपने काव्य में उजागर करते रहे. माधव कौशिक ने कहा कि मेरी दो किताबें 'लौट आओ पार्थ' और 'सुनो राधिका' दिनकर के कार्य से ही प्रेरित रहीं. उन्हें राष्ट्र का कवि इसलिए ही कहा गया क्योंकि उनकी कलम और कविता आम इनसान के लिए चलती थी.