थर्ड जेंडरएक ऐसा विषय है जो कौतूहल पैदा करता है लेकिन सदियों से मन में जमी हुई झिझक उस कौतूहल को शांत करने का साहस नहीं दे पाती है। ‘‘थर्ड जेंडर विमर्श’’ नाम की पुस्तक का संपादन शरद सिंह ने किया है, जिसका प्रकाशन सामयिक प्रकाशन कर रही है। ये पुस्तक विश्व पुस्तक मेले में जारी होगी। शरद सिंह को उनके लेखन एवं सामाजिक कार्यों के लिए राष्ट्रीय स्तर के अनेक सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। इस पुस्तक के विषय के संदर्भ में शरद सिंह कहती हैं कि ‘‘समय आ गया कि समाज और थर्ड जेंडर के बीच की दूरी मिटाई जाए। इसीलिए साहित्यकार इसके लिए साहित्यिक सेतु बनाने लगे हैं जो थर्ड जेंडर विमर्श के रूप में आकार ले चुका है। यह जो समामाजिक व्यवस्था है कि हिजड़ा, किन्नर, ख़्वाजासरा, छक्का…अनेक नाम उस मानव समूह को दिए जा चुके हैं, जो न तो स्त्री हैं, न पुरुष और उन्हें स्वयं समाज विचित्र दृष्टि से देखता है। जबकि वही समाज अपने परिवार की खुशी, उन्नति और उर्वरता के लिए उनसे दुआएं पाने के लिए लालायित रहता है किन्तु उनके साथ पारिवारिक संबंध नहीं रखना चाहता। उनके पास सम्मानजनक रोजगार नहीं है। अनेक परिस्थितियों में उन्हें यौन संतुष्टि का साधन बनना और वेश्यावृत्ति में लिप्त होना पड़ता है। समाज का दायित्व था कि वह थर्ड जेंडर के रूप में पहचाने जाने वाले इस तृतीयलिंगी समूह को अंगीकार करता। दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ नहीं। फिर साहित्यकारों का ध्यान इस ओर गया। हिन्दी कथा साहित्य में थर्ड जेंडर की पीड़ा को, उसके जीवन के गोपन पक्ष को दुनिया के सामने लाया जाने लगा। लोगों में कौतूहल जागा, भले ही शनैः शनैः। यमदीप’, ‘किन्नरकथा’, ‘तीसरी ताली’, ‘गुलाम मंडी’, ‘पोस्ट बॉक्स नं. 203 नाला सोपाराजैसे उपन्यास लिखे गए। स्वयं थर्ड जेंडर ने आत्मकथाएं लिखीं। शिक्षा, समाज, राजनीति और धर्म के क्षेत्र में थर्ड जेंडर ने अपनी योग्यता को साबित किया। समाज के लिए भी अपनी संकीर्ण मानसिकता के खोल से बाहर आना और थर्ड जेंडर के प्रति एक नया नज़रिया अपनाना जरूरी है।’’
शरद सिंह का मानना है कि ‘‘साहित्यकारों को हमेशा उन मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए जो समाज के उपेक्षित वर्गों से जुड़े हुए हैं और जिन्हें विमर्श बनने से पहले ही अकसर टाल दिया जाता है। साहित्य वह सशक्त माध्यम है जिसमें निष्पक्ष भाव से मुद्दे का विश्लेषण किया जा सकता है और जिसका दूरगामी प्रभाव रहता है।’’