भोपालः मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में गायन, वादन एवं नृत्य गतिविधियों पर केंद्रित श्रृंखला 'उत्तराधिकार' के तहत 'लांगुरिया गायन' और 'मालवी लोकनृत्य' की प्रस्तुतियां संग्रहालय सभागार में हुईं. कार्यक्रम की शुरुआत ज्ञानसिंह साक्य ने अपने साथी कलाकारों के साथ 'लांगुरिया गायन' से की. जिसमें उन्होंने सर्वप्रथम 'तो हे सुमिरों मेरी आदि भवानी' और 'तो हे सुमिरों शारदा माय लंगुरिया' गीत प्रस्तुत कर सभागार में मौजूद श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. इसके बाद कलाकारों ने अपने कलात्मक गायन कौशल से 'मठ पे बदरा भवन पे बदरा हे रहे हो माय' और 'दरवाजे पर खड़ी लहराय लंगुरिया' गीत प्रस्तुत किया.
श्रोताओं और दर्शकों की मांग पर ज्ञानसिंह साक्य ने अपने साथी कलाकारों के साथ 'काशी में लगे आवाज मोल को ले ले लंगुरिया' और 'हे पंचास कोटि योजन में अंडा को परमान' गीत प्रस्तुत करते हुए अपनी गायन प्रस्तुति को विराम दिया. गायन प्रस्तुति के दौरान ज्ञानसिंह साक्य का साथ हारमोनियम पर सुखदेव सिंह कुशवाहा, तबले पर राजेश कुशवाहा, ढोलक पर सुरेश कुमार, झींका पर गणेश गुप्ता, मंजीरे पर रूचि शिव हरे और गायन में शिवानी भदोरिया, हिमांशु, सुखदेव सिंह और रूचि शिव हरे ने सहयोग किया. ज्ञानसिंह साक्य लम्बे समय से गायन के क्षेत्र में सक्रीय हैं. ज्ञानसिंह साक्य ने गायन की कई प्रस्तुतियां देश के विभिन्न कला मंचों पर दी हैं.