नई दिल्लीः 19 सितंबर, उनके जीवन और सांसों की गति थमने लगी थी. अस्पताल के आधुनिक यंत्र और साथी साहित्यकारों की प्रार्थनाएं काम न आईं और हमारे दौर के चर्चित लेखक संपादक विष्णु खरे नहीं रहे. जीबी पंत अस्पताल में आज उन्होंने अंतिम सांसें लीं. 12 सितंबर रात किसी वक्त ब्रेन स्ट्रोक हुआ था, तब से वह सघन चिकित्सा कक्ष में थे. जीवन की सामान्य गति पर संघर्ष को तरजीह देने वाले खरे ने दर्जनों नौकरियां छोड़ीं और पकड़ीं, पर किसी भी दौर में उनके अंदर का रचनाकार हारा नहीं, थका नहीं. उनका जन्म 09 फरवरी, 1940, को मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में हुआ था. अंग्रेज़ी साहित्य से एमए करने के बाद उन्होंने कुछ समय समाचारपत्रों के संपादकीय विभाग में काम के अलावा अध्यापन किया. फिर वह दिल्ली आ गए और यहां इंस्टीट्युट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स में अंग्रेज़ी के एजुकेशन ऑफ़िसर बने. कुछ समय हस्तिनापुर कॉलेज में अध्यापन किया और फिर साहित्य अकादेमी के उप-सचिव (कार्यक्रम) बने. वहां से एक राष्ट्रीय हिंदी अखबार के प्रभारी कार्यकारी संपादक बने. 

 

विष्णु खरे का समूचा जीवन लेखन, संपादन, प्रकाशन, कहानियां, कविताएं, अनुवाद, समीक्षा में बीता. उनका पहला प्रकाशन टी.एस. इलियट का अनुवाद मरु प्रदेश और अन्य कविताएं’ 1960 में छपा था. पहला कविता-संग्रह एक ग़ैर रूमानी समय में’ 1970 में खुद छपाया. दूसरा अशोक वाजपेयी की पहचानसीरीज़ की पहली पुस्तिका विष्णु खरे की कविताएंके रूप में छपा, हालांकि इसमें पहले संकलन की काफी कविताएं थीं. खुद अपनी आंख सेऔर पिछला बाकीउनके अन्य संग्रह थे. समीक्षा-पुस्तक आलोचना की पहली किताब’ 1983 में छपी थी. विदेशी कविता से हिंदी तथा हिंदी से अंग्रेज़ी में अनुवाद के अलावा सैकड़ों लेख छपे. उन्हें दिल्ली सरकार के साहित्यिक योगदान पुरस्कार, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, भवानी प्रसाद मिश्र स्मृति पुरस्कार तथा मध्य प्रदेश शिखर सम्मान मिल चुका था. वह वर्तमान में दिल्ली हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष थे. उनके निधन से साहित्यजगत में शोक है और लोग सोशल मीडिया पर    शोक जाहिर कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं. जागरण हिंदी की ओर से भी कवि विष्णु खरे को नमन.