नई दिल्लीः तोलकाप्पियम के हिंदी अनुवाद और शास्त्रीय तमिल साहित्य की 9 पुस्तकों के कन्नड़ अनुवाद का विमोचन शिक्षा राज्य मंत्री डॉ सुभाष सरकार ने किया. सरकार ने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं के इतिहास में तमिल भाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान है. तमिल साहित्य और संस्कृति की समृद्ध विरासत ने समय के उतार-चढ़ाव को झेला है और सदियों से फल-फूल रहा है. संगम साहित्य और तोलकाप्पियम इस समृद्ध और गौरवशाली परंपरा का हिस्सा हैं और देश को इस विरासत पर बेहद गर्व है. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि लोग इन ग्रंथों में निहित साहित्यिक समृद्धि और ज्ञान का स्वाद लेना चाहेंगे. उन्होंने इस साहित्य को हिंदी और कन्नड़ पाठकों के लिए उपलब्ध कराने के लिए केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान और इसके अनुवादकों की टीम को बधाई दी. सरकार ने कहा कि ग्रंथों का अनुवाद महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल पहुंच और व्यापक पाठक संख्या प्रदान करता है बल्कि विभिन्न स्रोत भाषाओं से नए शब्दों को पेश करके भाषाओं को समृद्ध भी करता है. अनुभवी तमिल और कन्नड़ विद्वानों और बैंगलोर तमिल संगम की एक टीम द्वारा संगम साहित्य का कन्नड़ में अनुवाद करने का प्रयास किया जा रहा था. अनुवादक दोनों भाषाओं के अच्छे जानकार हैं और उन्हें अनुवाद कार्य को पूरा करने का बहुत अच्छा अनुभव है. शास्त्रीय तमिल पाठ के कन्नड़ अनुवाद को नौ खंडों में 8,000 से अधिक पृष्ठों के साथ प्रकाशित करने के लिए त्वरित पहल की गई थी और सीआईसीटी इसे प्रकाशित करके सफल रहा था. इस अवसर पर केन्द्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो ई सुंदरमूर्ति, निदेशक प्रो आर चंद्रशेखरन और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे.
याद रहे कि तमिल लेखन प्रणाली 250 ईसा पूर्व की है और तमिल संगम कविता में 473 कवियों द्वारा रचित 2381 कविताएं हैं. 102 गुमनाम कविताएं भी हैं. अधिकांश विद्वानों का सुझाव है कि पहली शताब्दी से चौथी शताब्दी तक फैला ऐतिहासिक कैनकम साहित्य युग, विश्व साहित्य के सर्वश्रेष्ठ युग में से एक है. प्राचीन तमिल में एक लंबी काव्य परंपरा और साहित्य का एक बड़ा समूह था. केवल तोलकाप्पियम नामक कविता में एक व्याकरणिक ग्रंथ, आठ संकलन (एट्टुत्तोकाई) और दस गीत (पट्टुप्पट्टू) समय के कहर से बच गए हैं. एट्टुत्तोकाई में नट्रिनै, कुरुंटोकाई, एग्नकुरुनुरु, पथित्रुपट्टु, परिपादल, कलित्टोकाई, अकाननुरु और पुराणनुरु शामिल हैं. तोल्काप्पियम सबसे प्राचीन विद्यमान तमिल व्याकरण ग्रंथ है और तमिल साहित्य का सबसे पुराना लंबा काम है. तमिल परंपरा में कुछ लोग पौराणिक दूसरे संगम में पाठ को पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व या उससे पहले रखते हैं. तोलकाप्पियम, व्याकरण और काव्य पर एक अनूठा काम है, इसके नौ खंडों के तीन भागों में, एज़ुट्टु (अक्षर), कर्नल (शब्द) और पोरुल (विषय वस्तु) से संबंधित है. बोलचाल से लेकर सबसे काव्यात्मक तक मानव भाषा के लगभग सभी स्तर तोल्काप्पियार के विश्लेषण के दायरे में आते हैं, क्योंकि वे स्वर विज्ञान, आकृति विज्ञान, वाक्य रचना, बयानबाजी, छंद और काव्य पर उत्कृष्ट काव्यात्मक और एपिग्रामेटिक बयानों में व्यवहार करते हैं. पद्य (पाठ, लिप्यंतरण, और अनुवाद) में हिंदी अनुवाद में तोलकाप्पियम का अनुवाद डॉ एच बालसुब्रमण्यम और प्रो. के. नचिमुथु द्वारा किया गया है और 1214 पृष्ठों के साथ हार्डबाउंड में प्रकाशित किया गया.