चंडीगढ़ः तेजेन्द्र शर्मा भारतीय साहित्य में एक प्रतिष्ठित नाम हैं. 'काला सागर', 'ढिबरी टाईट', 'देह की कीमत', 'ये क्या हो गया', 'पासपोर्ट के रंग', 'बेघर आंखें', 'सीधी रेखा की परतें', 'कब्र का मुनाफा', 'प्रतिनिधि कहानियां', 'मेरी प्रिय कथाएं' और 'दीवार में रास्ता' नामक कहानी संकलनों और कविता एवं गजल संग्रह 'ये घर तुम्हारा है' से उन्होंने अपनी खास पहचान बनाई. कुछ धारावाहिक भी लिखे और कई सम्मान भी हासिल किया. उनके लेखन कर्म पर यों तो शोध होते रहे हैं, पर डॉ प्रीत अरोड़ा ने अपने निर्देशन उन पर हो रही पीएचडी की सूचना एक खास अंदाज में दी है. उन्होंने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में उत्साहित होकर इसे एक उम्दा मौके के रूप में लिया है.
डॉ प्रीत अरोड़ा की पोस्ट संपादित रूप में यों है. "वर्ष 2017 में मुझे रयात बाहरा विश्वविद्यालय मोहाली में शोध कार्य करवाने का पहली बार सौभाग्य प्राप्त हुआ. आज मेरे निर्देशन में शोध कार्य कर रही छात्रा ज्योति बसरा के शोध-कार्य की रूपरेखा जमा करवाने का मौका आया. ज्योति के शोध कार्य का विषय है, 'तेजेन्द्र शर्मा के कथा साहित्य का सामाजिक व सांस्कृतिक अध्ययन'. उन्होंने लिखा है, "मेरा एक सपना था कि मैं ख़ुद तेजेन्द्र शर्मा पर शोध कार्य करूँ. पर मैं अगर ख़ुद न कर पाई पर मेरी स्टूडेंट ज्योति के माध्यम से ये सपना पूरा होगा. शोध कार्य की रूप रेखा की जाँच के लिए विषय विशेषज्ञ के रूप में डॉ हरीश नवल अपना क़ीमती समय निकाल कर दिल्ली से आए. उन्होंने बहुत ही सकारात्मक सोच से हमें सुझाव भी दिए. इस दौरान उन्होंने व्यंग्य का स्वाद भी चखाया. उन्होंने अपनी पुस्तक 'माफ़िया ज़िंदाबाद' दी. तेजेन्द्र शर्मा व डॉ हरीश नवल दोनों ही ज़िंदादिल इंसान हैं और साहित्य के क्षेत्र में समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बने रहे."