विश्व पुस्तक मेला के दूसरे दिन एक छोटी ट्राली पर भारी भरकम पुस्तक लेकर घूमता एक शख्स मेले में आकर्षण का केंद्र बना रहा। छोटी ट्राली पर चार हजार चालीस पृष्ठों की बड़े आकार की पुस्तक दरअसल चारों वेद का एक जिल्द में अवुवाद है। पंद्रह इंच चौड़ा और बीस इंच लंबे आकार के इस पुस्तक का वजन तीस किलो है इसलिए इसको ट्राली पर लेकर चलना पड़ रहा है। तेलांगाना के डॉ. एम कृष्णा रेड्डी ने चारों वेदों के तेलुगू में अनुवाद करने और उसको एक जिल्द में लाने का श्रमसाध्य काम किया है । दैनिक जागरण से खास बातचीत में लेखक डॉ रेड्डी ने इस वृहदाकार ग्रंथ को तैयार करने के अपने संघर्ष को साझा किया। रेड्डी आध्रप्रदेश के शादनगर के एक कॉलेज में प्रिंसिपल थे और पांच साल की नौकरी के बाद जब वो इस काम में लगे तो उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। रेड्डी ते मुताबिक उनके गुरू गोपदेव शास्त्री ने उनको शास्त्रों और वेदों की शिक्षा दी और उस दौरान ही उनके मन में ये चाहत पैदा हुई कि दिव्यवाणी और देववाणी में प्रकाशित ग्रंथ को अपनी भाषा तेलुगू में अनुदित करें। जब वो पीएचडी करने दिल्ली आए तो यहां स्वामी जगदीश्वरानंद ने वेदों को तेलुगू में अनुवाद करने के लिए प्रेरित किया। इस काम में रेड्डी को करीब पच्चीस साल लगे और उनको वेदानंद सरस्वती ने सहायता की। उनका कहना है कि इस काम में बहुत कठिनाई आई। खर्च इतना बढ़ता चला गया कि उनको पत्नी के गहने और अपनी जमीन तक बेचनी पड़ी। अनुवाद के दौरान ही उन्होंने तय किया कि तेलुगू में अनुवाद के बाद चारों वेदों को एक जिल्द में प्रकाशित करेंगे। रेड्डी ने दयानंद सरस्वती द्वारा वेद के हिंदी अनुवाद को देखा था और उसको ही आधार बनाकर उन्होंने इसका तेलुगू में अनुवाद किया। संस्कृत के श्लोकों को तेलुगू लिपि में जस का तस रखा और फिर उन श्लोकों का तेलुगू में अनुवाद कर पुस्तक तैयार की। जब अनुवाद का काम हो गया तो उन्होंने 15 लाख रुपए खर्च कर इतने बड़े आकार की दो सौ प्रतियां प्रकाशित करवाईं। एक प्रति का मूल्य चौबीस हजार रुपए रखा गया है और प्रकाशन के बाद से अबतक इसकी 15 प्रतियां बिक चुकी हैं। डॉ रेड्डी दो दिनों के लिए दिल्ली पुस्तक मेले में अपने काम को प्रदर्शित करने आए हैं, सोमवार को भी वो मेले में तीस किलो और चार हजार पन्नों के वेद को लेकर उपस्थित रहेंगे।