नई दिल्लीः वाणी प्रकाशन एवं संस्कार भारती के संयुक्त तत्वावधान में वरिष्ठ नाटककार दया प्रकाश सिन्हा के तीन खण्डों में संकलित नाटकों के संग्रह 'नाट्य-समग्र' का लोकार्पण साहित्य अकादमी सभागार में आयोजित हुआ. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल. कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार व गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने की. वक्तव्य दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो चन्दन कुमार और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक देवेंद्र राज अंकुर ने दिया. वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया. प्रो चन्दन कुमार ने कहा कि दया प्रकाश जी को इतिहास परेशान करता है. इतिहास और सत्ता को समझने की चिन्ता है. यह भारतीय जिजीविषा का पर्याय है. यह भारतीय होने का पर्याय उनके नाटकों में देखा जा सकता है. बालमन, इतिहासबोध, उनके नाटकों में है. दया प्रकाश सिन्हा ने कहा कि मैं एक लक्ष्य लेकर चला हूँ और वह है- नाटक, नाटक, नाटक, मैंने जो नाटक लिखे, मुझे पता नहीं था कि वे स्वीकार होंगे, पर यह अनायास ही स्वीकार कर लिए गए और आज उनपर पर्याप्त शोध और अनुवाद हो रहे हैं.
देवेन्द्र राज अंकुर ने कहा कि 'अशोक' नाटक की भूमिका मैंने लिखी लिखी है. 'कथा एक कंस की' का नाट्य केन्द्र राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पूर्व इलाहाबाद में स्थापित होता है. मुख्य अतिथि प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा कि दुनिया पहले से है आज शुरू नहीं हुई. अपने बचपन के दिनों को याद कर गाँव की नाट्य-समिति को याद किया. उन्होंने कि कहा नाटक एक जीवन्त व्यवस्था है, दिशा भी देती है. समाज के निर्माण और संस्कृति के बारे में सोचना होगा कि इसके साथ हम न्याय कर रहें हैं या नहीं? चयन-प्रक्रिया पर जब सवाल करते हैं तो चयन कौन कर रहा है? इस पर विचार करना चाहिए. 'श्रेष्ठता' पर बातचीत होनी चाहिए. मंचस्थ विद्वान तय करें. कार्यक्रम की अध्यक्ष मृदुला सिन्हा ने कहा उत्सव-पुरुष दया प्रकाश सिन्हा भारतीय संस्कृति में गहरी आस्था के कारण मैं उम्र में छोटी होने के कारण भाई के दीर्घायु की कामना करती हूं. दया प्रकाश सिन्हा इतिहास को वर्तमान में खोजते हैं. संस्कार भारती के अध्यक्ष राजेश जैन चेतन ने कहा कि जहां दया प्रकाश सिन्हा को लिख दिया व संस्कार भारती समझो लिख दिया.