नई दिल्लीः जाने-माने हिंदी साहित्यकार डॉ शेरजंग गर्ग का 83 साल की उम्र में निधन हो गया. वह व्यंग्य और बाल साहित्य में अपने योगदान खासकर अपने शोध प्रबंध 'स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता में व्यंग्य' के लिए बेहद चर्चित हुए. उनके इस ग्रंथ को हिंदी हास्य-व्यंग्य की विधिवत आलोचना का आरंभिक बिंदु माना जा सकता है. डॉ गर्ग ने व्यंग्य के साथ ही कविताएं भी लिखीं और गज़लें भी. वह अपनी गजलों के माध्यम से बहुत ही सरल भाषा में कटाक्ष करने के चलते मंच पर भी काफी चर्चित थे. इनकी पुस्तक 'गजलें ही गजलें' काफी चर्चित रही. डॉ शेरजंग गर्ग के बाल-साहित्य के योगदान को भी कभी भुलाया नहीं जा सकता. ऐसे समय में जब हिंदी साहित्य में शिशु गीत न के बराबर थे, डॉ गर्ग ने उनकी शुरुआत की. बाल-साहित्य के प्रति उनके योगदान को देखते हुए हिंदी अकादमी, बालकन बारी तथा बाल भवन ने उनको सम्मानित किया था.

डॉ शेरजंग गर्ग के निधन की सूचना मिलते ही साहित्यजगत दुखी हो गया. सोशल मीडिया के कई मंच- फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्वीटर शोक संवेदनाओं से अट गए. डॉ. शेरजंग गर्ग के निधन पर गहरा दुख जताने वालों में वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया, डॉ दिविक रमेश, ज्योतिष जोशी, आलोक मेहता, विजय किशोर मानव, प्रकाश मनु, स्मिता, धीरेंद्र अस्थाना, गुलशन मधुर, विनोद अग्निहोत्री, ममता किरण, लालित्य ललित, उमेश अग्निहोत्री आदि शामिल हैं. शेरजंग गर्ग की चर्चित रचनाओं में कविता संग्रह- चंद ताजा गुलाब तेरे नाम, क्या हो गया कबीरों को; आलोचना- स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता में व्यंग्य, व्यंग्य के मूलभूत प्रश्न; व्यंग्य- बाजार से गुजरा हूं, दौरा अंतर्यामी का; बालसाहित्य- सुमन बालगीत, अक्षर गीत, नटखट गीत, गुलाबों की बस्ती, शरारत का मौसम, पक्षी उड़ते फुर-फुर, पशु चलते धरती पर, गीतों के इंद्रधनुष, गीतों के रसगुल्ले, यदि पेड़ों पर उगते पैसे, गीता की आंख मिचौली, भालू की हड़ताल, सिंग बड़ी सिंग, चहक भी जरूरी महक भी जरूरी (सहलेखन) शामिल हैं.