हिंदी साहित्य में हाल के दौर में किसी लेखक, कथाकार, आलोचक को शायद ही इतना सम्मान व संवेदनाएं मिली हों, जितना हिंदी के आलोचक डॉक्टर नंदकिशोर नवल को मिला. 83 वर्ष की उम्र में पटना में उनके निधन की सूचना मिलते ही देश भर में फैले उनके शिष्य, उनके समकालीन और युवा कथाकार दुखी हो गए और तुरंत ही फेसबुक पर शोक संवेदनाओं का सिलसिला शुरू हो गया. प्रोफेसर नंदकिशोर नवल पटना विश्वविद्यालय में हिंदी के बेहद लोकप्रिय अध्यापक, और उतने ही महत्त्वपूर्ण आलोचक थे. बिहार में प्रगतिशील लेखक संघ को मजबूत आधार देने में डॉ नंद किशोर नवल का बड़ा योगदान था. उन्होंने आलोचना, उत्तरशती जैसी पत्रिकाओं का सम्पादन किया था. प्रोफेसर अली जावेद ने लिखा नन्द किशोर नवल सिर्फ बिहार के नहीं बल्कि पूरे हिंदी जगत के एक महत्त्वपूर्ण साहित्यकार थे. पूरी ज़िंदगी उन्होंने एक प्रतिबद्ध सामाजिक चिंतक के रूप में गुजा़री और अपने आदर्शों पर कभी समझौता नहीं किया.
म. प्र. साहित्य सम्मेलन, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित वरिष्ठ साहित्यकार उषा किरण खान, ममता कालिया, प्रोफेसर आशुतोष कुमार, तनवीर अख्तर, ज्योतिष जोशी, वीरेंद्र यादव, गोपेश्वर सिंह, पत्रकार उर्मिलेश, कवि मदन कश्यप, कथाकार हृषीकेश सुलभ, रंगकर्मी सतीश आनन्द, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, साधना अग्रवाल, प्रेम जन्मेजय, प्रणय प्रियंवद, परवेज अख्तर, रूपा सिंह, कवि संजय कुंदन, यतींद्र मिश्र, धीरेंद्र अस्थाना, विमल कुमार, कर्मेंदु शिशिर, अरुण शीतांश, सत्यानन्द निरुपम, नागेन्द्र, नसीरुद्दीन हैदर खां, फरीद खां आदि ने नवल जी को भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करते हुए अपने संस्मरण और उनके कृतित्व को याद किया. कुछ ने आलोचना और कसौटी जैसी पत्रिकाओं के संपादन के साथ ही उनकी कई चर्चित पुस्तकों जिनमें निराला रचनावली, दिनकर रचनावली, कविता की मुक्ति, हिंदी आलोचना का विकास, प्रेमचंद का सौंदर्यशास्त्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, मुक्तिबोध: ज्ञान और संवेदना, कविता के आर पार, कविता: पहचान का संकट, तुलसीदास , समकालीन काव्य-यात्रा, मुक्तिबोध: ज्ञान और संवेदना, निराला और मुक्तिबोध: चार लंबी कविताएँ, दृश्यालेख, मुक्तिबोध और निराला: कृति से साक्षात्कार शामिल है का भी उल्लेख किया.