नई दिल्लीः भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध दिल्ली पब्लिक लायब्रेरी ने प्रसिद्ध दलित साहित्यकार डॉ जयप्रकाश कर्दम को 'संत रविदास सम्मान 2018' देने की घोषणा की है. इससे पहले उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने डॉ लोहिया सम्मान प्रदान किया था. डॉ कर्दम समकालीन दलित साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं. उनका लिखा उपन्यास 'छप्पर' एक तरह से दलित साहित्य के पहले उपन्यास के रूप में स्थापित है. दलित समाज को लेकर लिखी गई उनकी कई कहानियां भी काफी सराही गई हैं. उच्च वर्ग के छद्म जातीय उदारवाद पर लिखी उनकी कहानी 'नो बार' भी काफी चर्चित रही, जिस पर एक वृत्तचित्र भी बना. पर साहित्य की हर विधा में शानदार काम करने के बावजूद जय प्रकाश कर्दम अपनी आलोचनाओं से काफी आहत रहे और इसका इजहार भी करते रहे हैं. डॉ लोहिया सम्मान पर जब उनकी आलोचना हुई तो उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था, " पिछले कुछ दिनों से, जब से लोहिया सम्मान की घोषणा हुई है, लेखक मित्रों का एक वर्ग मेरा विशेष आलोचक बना हुआ है. अंबेडकरवाद के प्रमाण-पत्र बाँटने में लगा यह वर्ग अपनी समझ और चेतना के अनुसार मुझे ब्राह्मणवादी, दलित विरोधी, भ्रमित, भटका हुआ, बिका हुआ आदि..आदि…विशेषणों से सुशोभित करके मुझे दलित समाज, साहित्य और आंदोलन का खलनायक सिद्ध करने में लगा है. मुझे नहीं पता इन लोगों ने मेरा लिखा साहित्य कितना पढ़ा है, पढ़ा भी है या नहीं. दलित आंदोलन, अंबेडकरवाद या अंबेडकरवादी विचारधारा की उनकी क्या समझ और परिभाषा है, यह भी वे ही जानते हैं. मेरी निष्ठा और प्रतिबद्धता पर सवाल उठाने वालों की अपनी निष्ठा और प्रतिबद्धता क्या है, इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि मैं जो था, वही हूँ और वही रहूँगा. खुद को सिद्ध करने के लिए मुझे किसी के प्रमाण-पत्र की आवश्यकता नहीं है. किन्तु, मेरे प्रति इस तरह की नकारात्मक और हमलावर टिप्पणियाँ करके यदि मेरे कुछ लेखक मित्रों की कुण्ठा कम होती है और इससे उनको सुख मिलता है तो मैं उन्हें इस सुख से वंचित नहीं करना चाहूँगा. वे सुखी रहे, खूब सुख बंटोरें. मेरी हार्दिक मंगल कामनाएँ."
उन्होंने एक दूसरी टिप्पणी में लिखा, "उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा सन 2017 के लिए लोहिया सम्मान मुझे दिए जाने की घोषणा के बाद फोन और फेसबुक के माध्यम से बहुत से मित्रों और शुभचिंतकों ने मुझे बधाई और शुभ कामनाएँ दी हैं. बधाई संदेशों की कड़ी में कुछ मित्रों, शुभचिंतकों द्वारा मुझे ‘गऊ लेखक’ कहकर कटाक्ष किया गया है. आज के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में ‘गऊ’ शब्द के विशेष निहितार्थ हैं. मुझको ‘गऊ’ कहने वाली कुछ टिप्पणियाँ उसी निहितार्थ की ओर संकेत करती प्रतीत होती हैं. इन टिप्पणियों के शब्दों की व्याख्या की जाए तो यह अर्थ निकलता है कि जयप्रकाश कर्दम उस दलित विरोधी और हिंसक हिन्दुत्ववादी सोच का समर्थक लेखक है, जो गऊवाद की जनक और पोषक है. इन टिप्पणियों पर मैं अपनी ओर से कुछ नहीं कहना चाहता. मैं चाहूँगा कि पाठक, आलोचक और शोधार्थी मेरे लिखित साहित्य का मूल्यांकन करें और समाज को अपनी राय से अवगत कराएं.
"मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि लेखक होने से पहले मैं एक व्यक्ति हूँ और सभी व्यक्तियों से खुले मन और मस्तिष्क से मिलता हूँ. मेरे संपर्क में आने वाले नवोदित लेखकों, विद्यार्थियों, शोधार्थियों को झिड़कता नहीं हूँ. उनके साथ दूरी न बनाकर मित्रवत व्यवहार करता हूँ और यथा-आवश्यक उन्हें समय देता हूँ. उनसे कभी अपना कोई काम नहीं करवाता हूँ. न अपनी प्रशंसा में कभी किसी से लिखवाता हूँ. दलित साहित्य के किसी भी विषय या लेखक पर कार्य कर रहे हों, सिनापसिस बनवाने से लेकर, पुस्तकें उपलब्ध कराने तक, उनके शोध कार्यों में उनकी यथासंभव सहायता और मार्गदर्शन करता हूँ. बहुत से शोधार्थियों को अपनी जेब से पुस्तकें खरीद कर या फोटो कॉपी करवाकर उनको भिजवाता हूँ और उनसे पैसे नहीं लेता हूँ. बहुत से विद्यार्थियों को उनके संकट के समय में यथा-सामर्थ्य आर्थिक सहायता भी करता हूँ ताकि उनकी पढ़ाई बाधित नहीं हो. किसी पर कभी अपने विचार थोपता नहीं हूँ, अपने विवेक के आधार पर स्वयं विचार निर्माण करने के लिए प्रेरित करता हूँ. कहीं भी जाने पर मीट, शराब या अन्य किसी प्रकार की मांग नहीं करता हूँ. जहां, जैसा मिल जाता है बहुत प्यार से वैसा खाता और रहता हूं और आयोजकों को किसी भी प्रकार की असुविधा में नहीं डालता हूं. छात्राओं को यौन दृष्टि से नहीं देखता हूँ और न उनके प्रति किसी प्रकार की अश्लील टिप्पणी करता हूँ. किसी भी लेखक से अपनी पुस्तकों की समीक्षा लिखने के लिए आग्रह नहीं करता हूँ. अपने लेखन में उत्तेजक और आक्रोशपूर्ण भाषा की अपेक्षा सहज, सरल भाषा में तार्किक ढंग से अपनी बात कहने की कोशिश करता हूँ. किसी भी लेखक पर व्यक्तिगत छींटाकशी अथवा स्तरहीन, अभद्र और अनावश्यक टिप्पणी न करके लेखन और विचार के प्रति शालीनता से सहमति-असहमति व्यक्त करता हूँ. अपने बारे में की गई कटु, असत्य और अमर्यादित टिप्पणियों पर भी कोई प्रतिक्रिया देने में अपना समय नष्ट नहीं करता हूँ. यदि यह सब मेरा ‘गऊ’ या ‘सीधी, सरल गऊ जैसा’ होना है तो मैं चाहूँगा कि जीवन भर ऐसा ही बना रहूं तथा अपने समय और ऊर्जा का उपयोग दलित-बहुजन समाज के हित में सकारात्मक दिशा में ही लगाऊँ.