इंदौरः वामा साहित्य मंच के तत्वावधान में डॉ. गरिमा संजय दुबे के प्रथम कहानी संग्रह 'दो ध्रुवों के बीच की आस' का लोकार्पण स्थानीय प्रीतम लाल दुआ सभागार में हुआ. समारोह में लेखक व प्रकाशक पंकज सुबीर, वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर मंजुल व लेखिका ज्योति जैन ने इस पुस्तक पर चर्चा की. स्वागत भाषण संस्था की अध्यक्ष पद्मा राजेंद्र ने दिया. आत्मकथ्य में लेखिका ने अपनी रचना प्रक्रिया की जानकारी देते हुए अपनी कहानियों में आधुनिक युग की समस्याओं को चित्रित करने की बात कही. उन्होंने कहा कि युग बदला है तो समस्याएं भी बदली हैं, इसलिए इनके हल भी नए होने चाहिए. जीवन में संतुलन का समर्थन करती हूं और अतिवाद से बचने का प्रयास रहता है. इसलिए इस पुस्तक और एक कहानी का शीर्षक 'दो ध्रुवों के बीच की आस' सूझा. ज्योति जैन ने पुस्तक पर अपने विचार रखते हुए कहा कि गरिमा के प्रथम कहानी संग्रह दो ध्रुवों के बीच की आस के प्रथम प्रयास में उनकी कहानियों की परिपक्वता अचंभित करती है. वरिष्ठ पत्र लेखक व साहित्यकार मनोहर मंजुल ने कहा कि गरिमा की कहानियां समाज के विभिन्न दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करती हैं. उसकी लेखनी समाज के प्रति उसके दायित्व का बोध कराती है.
प्रकाशक व लेखक पंकज सुबीर ने कहा कि गरिमा का पहला कदम सधा हुआ और संतुलित है. इनकी कहानियों में विषयों का विस्तृत संसार है. वही कहानी संग्रह सफल होता है, जिसकी कहानियों के पात्रों की छटपटाहट बैचैनी पाठक अपने मैं महसूस करें, मुझे इनकी कहानियों में यही देखने को मिला है. कहानियों के विषय की विविधता चकित करती है, और गरिमा ने अपने पहले ही कहानी संग्रह से अपने लिए बड़ी रेखा खींची है जिसके आगे बहुत और बहुत सी श्रेष्ठ कृतियों की अपेक्षा बढ़ गई है. सुबीर ने कहा कि इंदौर के साहित्यिक कार्यक्रमों में समय की प्रतिबद्धता, कार्यक्रम के प्रति उत्साह, साहित्य की समय के साथ कदमताल से देश के साहित्यजगत को सीखना चाहिए. इस अवसर पर डॉ. दीपा मनीष व्यास ने गरिमा के लिखने छपने के सफर की रोचक और गंभीर जानकारी दी. आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार सरोज कुमार, संजय पटेल, जवाहर चौधरी, सूर्यकांत नागर, डॉ पद्मा सिंह, प्रकाश सिंह सोढ़ि, हरेराम वाजपेयी, प्रदीप नवीन, सुषमा दुबे, नियति साप्रे, मीनाक्षी स्वामी, जी डी अग्रवाल, कांतिलाल ठाकरे, आशुतोष दुबे, उत्पल बनर्जी, अजय सोदानी, रजनी रमन आदि मौजूद रहे. अतिथियों का स्वागत मदनलाल दुबे, शांता पारिख, सुभाष चंद्र दुबे, मीनाक्षी रावल, मनीष व्यास , भावना दामले ने किया. सरस्वती वंदना संगीता परमार ने प्रस्तुत की. कार्यक्रम का संचालन अंतरा करवड़े ने किया व आभार वसुधा गाडगिल ने व्यक्त किया.