लखनऊः कैफी आजमी एकेडमी के सभागार में हिंदी गजलों पर एक परिसंवाद तथा कविता पाठ के आयोजन में कवि डी एम मिश्र के नए गजल संग्रह 'वो पता ढूंढे हमारा' का विमोचन आलोचक डा जीवन सिंह, गजलकार रामकुमार कृषक, कवि स्वप्निल श्रीवास्तव, 'रेवान्त' पत्रिका  के प्रधान संपादक कवि कौशल किशोर, गायिका डा मालविका हरिओम, डा अनीता श्रीवास्तव और कवयित्री सरोज सिंह के हाथों संपन्न हुआ. कार्यक्रम में कथाकार शिवमूर्ति व संपादक-कवि सुभाष राय भी मौजूद थे. संगोष्ठी में वक्ताओं का कहना था कि डी एम मिश्र की गजलें एक ऐसा आईना हैं, जिसमें पिछले पांच साल के समय और समाज को देखा जा सकता है. इनमें एक तरफ अन्याय का प्रतिकार है, वहीं श्रम का सौंदर्य भी. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डा जीवन सिंह ने मार्क्स को उद्धृत करते हुए कहा कि कविता मानवता की मातृभाषा है.  साहित्य हमें मनुष्य विरोधी के विरुद्ध खड़ा करता है और इनसान बनने की सीख देता है. डी एम मिश्र की गजलें असली हिन्दुस्तान को सहज अंदाज में दिखाती हैं. यहां मध्यवर्गीय सीमाओं की तोड़ने की कोशिश है.

जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कवि कौशल किशोर का कहना था कि कविता की दुनिया विभिन्न काव्यरूपों से बनती है, जिसमें गजल विधा भी है, लेकिन यह आज हिंदी आलोचना के विमर्श से आमतौर पर बाहर है. भारतेन्दु के काल से लेकर साहित्य के हर दौर में गजलें लिखी गईं, लेकिन दुष्यन्त ने इसे यथार्थपरक बनाया, उसे समकाल से जोड़ा. यहां सामाजिक चेतना की भरपूर अभिव्यक्ति हुई. यह हिंदी गजलों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ है. अदम गोण्डवी, शलभ श्रीराम सिंह, गोरख पाण्डेय जैसे कवियों ने इसे आगे बढ़ाया. डी एम मिश्र की गजलें इसी परम्परा से जुड़ती हैं. कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि डी एम मिश्र की गजलों में किसी तरह की नजाकत या नफासत नहीं है और न ये बातों को घुमा फिरा कर कहते हैं. ये ठेठ भाषा की गजलें हैं. वरिष्ठ कवि रामकुमार कृषक का कहना था कि हिंदी कवियों ने यथार्थवादी व समाजोन्मुख काव्य परम्परा के द्वारा जिस काव्य संस्कृति का विकास किया डी एम मिश्र इसी संस्कृति के वाहक हैं. शोषित, पीडि़त व वंचित समाज की त्रासदियों व विडम्बनाओं तथा उनकी संघर्ष चेतना के अनेक बिम्ब उनके शेरों में उभरते हैं. कविता सत्र की अध्यक्षता रामकुमार कृषक ने की तथा डी एम मिश्र, डा मालविका हरिओम तथा स्वप्निल श्रीवास्तव ने अपनी गजलों के विविध रंग से परिचित कराया. मंच का संचालन कवयित्री सरोज सिंह ने किया. धन्यवाद ज्ञापन नीरजा शुक्ला ने किया. इस मौके पर भारी संख्या में साहित्यकार व साहित्यप्रेमी उपस्थित थे.