ग़ाज़ियाबादः देवप्रभा प्रकाशन और काव्य कॉर्नर द्वारा कोरोनाकाल में आयोजित डिजिटल गीत सम्मेलन-3 को नामचीन गीतकारों ने नई ऊंचाई दी. हिंदी के विख्यात कवि डॉ बुद्धिनाथ मिश्र, कवयित्री डॉ कीर्ति काले और डॉ सत्यपाल सत्यम ने अपने-अपने दो बहुचर्चित सिग्नेचर गीत सुनाए. डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने मधुर स्वर में इन्हें गाया-
'एक बार और जाल फेंक रे मछेरे,
जाने किस मछली में बंधन की चाह हो.
हर दर्पण में उभरा एक दिवालोक है,
रेत के घरौंदों में सीप के बसेरे,
इस अँधेरे में कैसे नेह का निबाह हो….
एक बार और जाल फेंक रे मछेरे,
जाने किस मछली में बंधन की चाह हो…
इसके अलावा-
'तुम इतने समीप आओगे
मैंने कभी नहीं सोचा था….' सुनाया. डॉ कीर्ति काले ने काव्य मंचों पर अपना मशहूर पढ़ा.
'आँखों में फागुन की मस्ती
पलकों पर वासन्ती हलचल
मतवाला- मन भीग रहा है
बूंदों के त्योहार में
शायद ऐसा ही होता है
पहले-पहले प्यार में.'
इसके अलावा उन्होंने यह गीत भी सुनाया-
'उड़ चला है दिन
लाए धूप वाले पर
याद फिर बुनने लगी है
मखमली स्वेटर.'
कवि डॉ. सत्यपाल सत्यम ने अपने दो गीतों की रचना के बारे में सभी को जानकारी दी और उनका सस्वर पाठ किया. इन गीतों की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
मेघ पहली बार जब झरे ….
भावनाएं कसमसा उठी,
शरारतें, ठिठौलियाँ हुईं,
मिट गई कड़वाहट सभी,
सब रसीली बोलियाँ हुईं,
मुख से मुस्कुराहटें झरीं,
और खिल अधर-अधर गए,
रूपसी पर रूप आ गया.
दूसरा गीत था-
 हम खिलौने हो गए हैं.
देह में पहला सा स्पंदन नहीं है,
धड़कनों में अब कोई कंपन नहीं है,
सांस में वह महकता मधुबन नहीं है,
अब मेरा अस्तित्व संवेदन नहीं है,
हँसना-रोना क्या कहें हम
क्या मनें, क्या रूठ जाएं,
दिल की अलमारी में उनकी
हम सजे या टूट जाएं,
हम खिलौने हो गए.
इस डिजिटल गीत सम्मेलन का संचालन कवि डॉ चेतन आनंद ने किया.