वाराणसीः मालवीय मूल्य अनुशीलन केंद्र, बांग्ला विभाग महिला महाविद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और सबद संवाद के उद्यम ने संयुक्त रूप से गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती मनाई. इस अवसर पर रवींद्र साहित्य में रचे बसे लेखक प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कहा कि टैगोर की संकल्पना में विश्व मानव है. क्षमा, करुणा, सख्य और प्रेम से बना विश्व मानव. वे सच्चे अर्थ में पृथ्वीर कवि थे. गुरुदेव ने कहा कि सबकी बाहें जहां खुलती हैं वहीं मेरा ह्रदय है. उपनिषद बाउल और संत साहित्य आयत्त कर उनका सृजन चिंतन और सरोकार निर्मित हुए हैं. प्रो प्रधान ने बताया कि खासकर बाउल गीतों के भीतर के लोकदर्शन ने उन्हें आकृष्ट किया. गांधी के साथ विरोध और असहमति के बावजूद उनकी मैत्री अक्षुण्ण थी. उनका स्वर स्वाधीनता का सच्चा स्वर था. यह आधुनिक भारत का स्वर था. गीतों में उन्होंने शब्द को महिमा दी और उनका समूचा साहित्य गीत की तरह ही आत्मा में गूंज छोड़ता है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो बलिराज पांडेय ने गुरुदेव के धर्म, दर्शन, कला की मनुष्य से संबद्धता के पक्ष को रेखांकित किया. डॉ ध्रुव कुमार सिंह ने बीसवीं शताब्दी के दो महापुरुषों का संदर्भ देते हुए बताया कि ये हैं गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर. दोनों योरोपीय राष्ट्र राज्य अवधारणा के विरूद्ध थे. डॉ सिंह ने रेखांकित किया कि टैगोर ने ही ग्राम्य विश्वविद्यालय की संकल्पना को साकार किया. पहला अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकेंद्र शांतिनिकेतन में खुलता है. उनका विश्वास था कि ग्राम जीवन ही वैज्ञानिक जीवन है. आत्मनिर्भर ग्राम कैसे बने इसके बारे में सोचा. डॉ सोमा दत्ता ने उनके साहित्य का विस्तृत परिप्रेक्ष्य लेकर चर्चा की. डॉ उत्तम गिरि ने उनकी विराट भावभूमि सहित उनके सृजन का वैशिष्ट्य रेखांकित किया. मालविका और साथियों ने सांगीतिक प्रस्तुति दी. उत्तम गिरि ने भी गीतांजलि से चुनी रचना का सस्वर पाठ किया. प्रो चंद्रकला त्रिपाठी ने स्वागत किया तथा संचालन किया वंशीधर उपाध्याय ने. इस अवसर पर बड़ी संख्या में शोध छात्रों के साथ प्रो आशाराम त्रिपाठी, प्रो सुशीला सिंह, प्रो सुमन जैन, डॉ धर्मजंग, सौरभ विक्रम, हरीश कुमार, डॉ कविता मिश्रा, डॉ सरोज उपाध्याय, डॉ प्रवीण पटेल, डॉ संतोष सिंह आदि उपस्थित थे. आभार डॉ राजीव कुमार वर्मा ने व्यक्त किया.