कवि, साहित्यकार और संपादक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितंबर, 1927 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ था. उन्होंने स्नातकोत्तर करने के बाद डिस्पैचर की नौकरी कर ली पर जल्द ही उसे छोड़ कर रेडियो से जुड़ गए. यहां वह हिंदी समाचार विभाग में सहायक संपादक पद पर नियुक्त हुए और लखनऊ, दिल्ली, भोपा आदि केंद्रों पर काम किया. साल 1964 में जब दिनमान पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ तो सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' के आग्रह पर वह दिनमान से जुड़ गए. 1982 में प्रमुख बाल पत्रिका पराग के संपादक बने और जीवनपर्यंत उससे जुड़े रहे

सर्वेश्वर दयाल का रचना संसार काफी व्यापक है. जिनमें खास तौर पर काव्य विधा में अज्ञेय के संपादन में 'तीसरा सप्तक' के अलावा 'काठ की घंटियां', 'बांस का पुल', 'एक सूनी नाव', 'गर्म हवाएं', 'कुआनो नदी', 'जंगल का दर्द', 'खूंटियों पर टंगे लोग', प्रेम कविताएं 'क्या कह कर पुकारूं', कविताएं (1), कविताएं (2), 'कोई मेरे साथ चले' और 'मेघ आये', बाल कविता; 'बतूता का जूता', 'महंगू की टाई', कथा साहित्य में लघु उपन्यास 'पागल कुत्तों का मसीहा' और 'सोया हुआ जल' 1974 में सूने चौखटे नाम से प्रकाशित उपन्यास 'उड़े हुए रंग', 'कच्ची सड़क', 'अंधेरे पर अंधेरा', नाटक; 'बकरी', 'लड़ाई', 'अब गरीबी हटाओ', 'कल भात आएगा तथा हवालात' 'रूपमती बाज बहादुर तथा होरी धूम मचोरी मंचन', बाल नाटक; 'भों-भों खों-खों', 'लाख की नाक'; यात्रा संस्मरण 'कुछ रंग कुछ गंध' और अनेक कहानियों का भारतीय, रूसी तथा यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद शामिल है. इसके अलावा उन्होंने मलयज के साथ 'शमशेर', अज्ञेय के साथ 'रूपांबरा', 'अंधेरों का हिसाब', 'नेपाली कविताएं' और 'रक्तबीज' जैसी किताबों का संपादन भी किया.

 

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की लेखन क्षमता की एक झलक हम उनकी 'समर्पण' शीर्षक से लिखी इन चंद शब्दों की कविता से जान सकते हैं.

घास की एक पत्ती के सम्मुख
मैं झुक गया
और मैंने पाया कि
मैं आकाश छू रहा हूं.

 

जागरण हिंदी की ओर से सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को नमन!