पटना:  'मैथिली दिवसके मौक़े पर 'मैथिली साहित्य संस्थान'   पटना द्वारा आई.आई.बी.एम साभागार में मैथिली के साथ-साथ उर्दू और फारसी  पर भी चर्चा हुई। मिथिला में फारसी लिपि के उद्भव, विकास और अवसान पर शोधालेख पढ़ते हुए डॉ. सादिक हुसैन ने कहा  "  मैथिली भाषा के ग्रंथों पर फारसी  शब्दों के प्रभाव का  विस्तृत अध्ययन  करने की आवश्यकता  है। ज्योतिरीश्वर के वर्ण  रत्नाकर  एवं विद्यापति के पदावली में फारसी  शब्दों  को  स्थान  दिया गया है। मिथिला में सूफी संत, खानकाह, मदरसा सहित कई  हिन्दू विद्वानों ने भी फारसी को समृद्ध किया।"   उन्होंने कहा कि औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा मखीं के गुरु  मुल्ला अबुल हसन दरभंगा के ही थे जिनके नाम पर आज भी वहां हसन चौक है। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान ने कहा कि 'गोत्र याज्ञवल्क्य  की  पत्नी  ‘संडिलाके नाम पर। भाषा,   साहित्य , संस्कृति और लिपि का  अध्ययन  एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारी डॉ. जलज कुमार तिवारी ने मिथिला के कोर्थु, पकौली, पिपरौलिया, भच्छी एवं कन्दाहा आदि शिलालेखों के आधार पर कहा  " पिपरौलिया अभिलेख जो दसवीं शताब्दी की है, में किसी महिला द्वारा अपने पिता की स्मृति में विष्णु की प्रतिमा दान किया गया है।

आई.सी.एच.आर. के सीनियर फेलो डॉ.  अवनींद्र कुमार झा ने तिरहुता एवं कैथी लिपि का मिथिला में हुए विकास पर प्रकाश डाला। डॉ. वीणा ठाकुर ने कहाजब तक मैथिली भाषा को प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया जाएगा एवं बच्चों को कम उम्र से ही तिरहुता लिपि का ज्ञान नहीं होगा, संस्कृति और परंपरा का विकास संभव नहीं है।"  

 इतिहासकार प्रो. डॉ. रत्नेश्वर मिश्र के अनुसार  " भाषा को राजनीतिक सीमा क्षेत्र से हमेशा अलग रखने की कोशिश की जानी चाहिए क्योंकि यह एक  उन्मुक्त  विषय है। "  खुदाबख़्श ओरिएंटल लाइब्रेरी के पूर्व निदेशक  इम्तियाज अहमद ने रेखांकित किया   "  फारसी और उर्दू के पाण्डुलिपियों के साथ-साथ उसके जाननेवालों का संरक्षण भी आवश्यक है।  आज फारसी के जितने विशेषज्ञ भारत में बचे हुए हैं उससे कई गुना अधिक अमेरिका, मध्य पूर्व एवं ईरान आदि देशों में हैं। यदि पाकिस्तान की सरकारी भाषा उर्दू नहीं होती तो शायद उर्दू भाषा भी विलुप्त होनेवाली भाषा की श्रेणी में आ चुकी होती।"

1976-80 के मैथिली आंदोलन के  दौरान गणपति नाथ झा वैद्यने दिसम्बर 1980 को डाक बंगला चौराहा पर धरना देने के क्रम में वैद्यनाथ मिश्र यात्रीऔर सुभद्र झा का  संस्मरण  सुनाते हुए कहा "   बैनर पर ई अमरुख जनता सरकार, तकरा घर-घर सँ ललकारपर सुभद्र झा द्वारा अमरुखशब्द  को नकारते हुए बैनर उतरवा दिया था। उनके जाने के बाद यात्रीजी ने अमरूख शब्द  को रूढ़  शब्द  एवं पहले भाषा और उसके बाद व्याकरण  की  उतपत्ति बताकर फिर से बैनर टंगवा दिया था।

कार्यक्रम में बासुदेव मल्लिक द्वारा लिखित मैथिल कर्ण  कायस्थक  पंजी प्रकाशनामक पुस्तक का विमोचन भी किया गया। संचालन मैथिली साहित्य संस्थान के सचिव भैरव लाल दास ने किया और धन्यवाद ज्ञापन कोषाध्यक्ष डॉ. शिव कुमार मिश्र ने किया।