नई दिल्लीः ज्ञानेन्द्रपति हिंदी के उत्साही, विलक्षण और अनूठे कवि हैं. उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ काव्य – लेखन को पूर्णकालिक तौर पर चुना. उनका जन्म 1 जनवरी, 1950 को झारखंड के ग्राम पथरगामा में हुआ था. उन्हें 'संशयात्मा' कविता संग्रह के साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा पहल सम्मान, बनारसीप्रसाद भोजपुरी सम्मान व शमशेर सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार मिल चुके हैं. ज्ञानेन्द्रपति की चर्चित कृतियों में आँख हाथ बनते हुए, शब्द लिखने के लिए ही यह कागज़ बना है, गंगातट, भिनसार, कविता संचयन – कवि ने कहा, मनु को बनती मनई और कथेतर गद्य : पढ़ते-गढ़ते, काव्य-नाटक : एकचक्रानगरी शामिल है.
इस अवसर प्रस्तुत है ज्ञानेन्द्रपति की चर्चित कविताः
समय और तुम
समय सफ़ेद करता है
तुम्हारी एक लट …
तुम्हारी हथेली में लगी हुई मेंहदी को
खीच कर
उससे रंगता है तुम्हारे केश
समय तुम्हारे सर में
भरता है
समुद्र-उफ़न उठने वाला अधकपारी का दर्द
की तुम्हारा अधशीश
दक्षिण गोलार्ध हो पृथ्वी का
खनिज-समृद्ध होते हुए भी दरिद्र और संतापग्रस्त
समय, लेकिन
नीहारिका को निहारती लड़की की आँखें
नहीं मूंद पाता तुम्हारे भीतर
तुम, जो खुली क़लम लिए बैठी हो
औंजाते आँगन में
तुम, जिसकी छाती में
उतने शोकों ने बनाये बिल
जितनी ख़ुशियों ने सिरजे घोंसले
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