जयपुरः जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में केंद्रीय मंत्री स्मृति जुबिन इरानी ने बतौर लेखक शिरकत किया. उन्होंने अपने पहले उपन्यास 'लाल सलाम' के बारे में बात करते हुए कहा कि यह पुस्तक धैर्य और लचीलेपन की कहानी प्रस्तुत करती है. उन्होंने इस उपन्यास के माध्यम से हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में दैनिक संघर्षों और नैतिक दुविधाओं को मानवीय बनाने की कोशिश की है. पत्रकार प्रज्ञा तिवारी के साथ बातचीत में इरानी ने पुस्तक को लेकर एक दशक से अधिक समय तक किए गए शोध के बारे में बात की और पुस्तक प्राप्त करने पर संजय के. रॉय की प्रतिक्रिया का भी वर्णन किया. उन्होंने कहा, “मेरे लिए यह पुस्तक कई व्यक्तियों के बलिदान का उत्सव है, जिनके बारे में कभी बात नहीं की जाएगी, लेकिन जिन्होंने संविधान में विश्वास किया है, उस संविधान के मूल्यों को बरकरार रखा है, अपने देश के खिलाफ हथियार नहीं उठाए हैं … और मुझे लगता है कि यह एक ऐसी किताब है जो उन्हें श्रद्धांजलि है.उन्होंने दावा किया कि आगामी 5 सालों में देश पूरी तरह नक्सलवाद से मुक्त होगा.
इरानी ने कहा कि साल 2006, 2009 में जब उनकी सरकार केंद्र में नहीं थी उस वक्त एक रिसर्च में सामने आया था कि तब नक्सलवादियों की जरूरतों को पूरा करते हुए जो व्यवसायीकरण किया गया, उसके 316 नेशनल प्रोजेक्ट हिट रहे थे. ये उनकी रिसर्च नहीं, पिछली सरकार की रिसर्च है. इसे लेकर 200 बिलियन खर्च की जो बात की गई वो पिछली सरकार के डॉक्यूमेंटेशन में हैं. उस दौर में हालात बद से बदतर थे. नक्सलियों की ओर से एक टैक्सेशन सिस्टम पर काम किया गया, औरतों का नक्सल कैम्पस में रेप किया जा रहा था, लेकिन किसी ने आवाज नहीं उठाई. बच्चों की तस्करी हो रही थी, लेकिन तब ये हेडलाइन नहीं बनी. पैरामिलिट्री फोर्स के जवान शहीद हुए लेकिन खामोशी छायी रही. एक डिबेट में एक पर्सन ने 72 सीआरपीएफ जवानों की शहीदी पर ये तक कहा था कि 'वर्दी पहनी है तो इनको पता होना चाहिए कि इनकी मौत होगी, तो इस पर इतना दुखी होने की क्या बात है'. उस वक्त लगा कि जो जवान शहीद हुए हैं उनका कोई घरवाला यदि ये डिबेट देख रहा होगा तो उन्हें कितना बुरा लग रहा होगा जबकि हर फौजी को पूरी रेस्पेक्ट मिलनी चाहिए. यही वजह है कि उन्होंने अपनी किताब में नक्सल हिंसा की धज्जियां उड़ाई हैं.