रांचीः स्थानीय सेंट जेवियर्स कॉलेज के हिंदी विभाग ने 'जीवन मूल्यों का संदर्भ और साहित्य: अतीत से आज तक' विषय पर वेबिनार कराया तो कई बातें सामने आईं. डॉ रणविजय राव ने कहा कि भूमंडलीकरण के युग में भारतीय संस्कृति, समाज और भाषा में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहा है. परिवर्तन की इस रफ्तार के साथ आबादी के सक्षम लोगों का एक छोटा-सा हिस्सा ही चल पा रहा है. जबकि, वंचित वर्ग, गरीबों, किसानों और मजदूरों की बड़ी आबादी इस परिवर्तन की नकारात्मकता को झेल रही है. उन्होंने कहा कि भूमंडलीय चेतना का सही दिशा में विकास तभी संभव हो पाता, जब भारतीय संस्कृति आचार-विचार पर आधारित सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन होता. लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भूमंडलीकरण ने तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध कराईं, लेकिन दुविधाएं भी बहुत बढ़ाईं. डॉ गिरीश पंकज ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है. लेकिन सिर्फ सच परोसना साहित्य का मकसद नहीं. सत्यम, शिवम, सुंदरम की भावना साहित्य में पोषित होती है. साहित्य सिर्फ आज की बात नहीं करता, बल्कि कल का पथ भी प्रशस्त करता है.
साहित्यकार रमेश सैनी ने कहा कि साहित्य की प्रासंगिकता समाज के लिए हमेशा बनी रहेगी. साहित्य समाज का दिशा निर्धारक होता है. उन्होंने कहा कि साहित्य मानव समुदाय व अर्जित की गई समृद्ध भाषा की उपलब्धि है. साहित्य अपने समय का प्रतिबिंब है. इसमें समाज निर्माण की शक्ति होती है. आज साहित्य की जरूरत ज्यादा बढ़ गई है और साहित्यकारों का सामाजिक दायित्व भी बढ़ गया है. दिलीप तत्त्वे ने साहित्य और समाज के पुराने संबंधों की पुनर्स्थापना विषय पर बात की. उन्होंने कहा कि लोग अच्छे साहित्य में अपने आपको ढूंढ़ते हैं, साथ ही अपने पास-पड़ोस, परिवेश की कथा और भाषा को तलाशते हैं. लोग युग के अनुरूप बदली परंपराओं और संस्कृति को अपनाना चाहते हैं, ताकि समय के साथ चल सकें. उन्होंने समय सापेक्ष साहित्य लेखन पर जोर दिया. इस वेबिनार में प्रतिभागियों ने साहित्य, समाज और भाषा से जुड़े कई प्रश्न भी वक्ताओं से पूछे. संचालन कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ कमल कुमार बोस ने किया. परिचर्चा के दौरान कॉलेज प्राचार्य डॉ इमानुएल बारला, डॉ जय प्रकाश पांडेय, डॉ सुनील भाटिया, डॉ मेल्टीना टोप्पो, डॉ संजय कुमार, मनीष मिश्रा समेत बड़ी संख्या में प्रतिभागी मौजूद थे.