हर तरह की मुश्किलों का सामना कर जीवन की दोबारा शुरुआत करने वाले  लोगों पर कहानियां लिखते हैं फ्रांसीसी लेखक डाविड फोइन्किनोस। वे अब तक पंद्रह से अधिक उपन्यास लिख चुके हैं। उनके उपन्यासों का 25 से भी अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। डाविड फोइन्किनोस एक फ्रेंच लेखक, स्क्रीन राइटर, म्यूजीशियन व फिल्म निर्माता भी हैं। फ्रेंच में लिखे उनके उपन्यास 'डेलीकेसी' की अब तक दस लाख से भी अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। सबसे पहले अंग्रेजी में अनूदित हुए इस उपन्यास पर हिट फिल्म भी बन चुकी है। हिंदी में भी यह 'नजाकत' नाम से अनूदित हो चुकी है। जागरण हिंदी के लिए उनसे बात की स्मिता ने। 


आपके उपन्यासों की ज्यादातर कहानियां प्रेम पर ही केंद्रित रहती हैं?
– किसी भी कहानी की थीम तो प्रेम ही होती है, लेकिन सभी कहानियां प्रेम पर आधारित नहीं हो सकती हैं। मैं मुख्य रूप से ऐसे लोगों के बारे में लिखता हूं, जो किसी भी प्रकार की विपदा से निकल कर अपने जीवन की दोबारा शुरुआत करते हैं।  
आजकल क्या लिख रहे हैं?
– हाल में मैंने एक उपन्यास लिखकर खत्म किया है, जो अभी प्रकाशित नहीं हुआ है। सौंदर्य किस तरह से दुनिया और प्रकृति को बचा सकता है, इसी विषय पर यह आधारित है। यह एक स्कूप है।

फिल्म और लेखन के बीच कैसे संतुलन साधते हैं?
– अभी तक मैंने सिर्फ दो फिल्में बनाई हैं। दोनों फिल्मों के निर्माण के बीच छह साल का अंतराल रहा, क्योंकि मैं सारा वक्त लिखने में ही लगाता हूं। मेरे जीवन का महत्वपूर्ण लक्ष्य लिखना है।

भारतीय साहित्य को कितना पढ़ा है?

-मैं भारतीय साहित्य नहीं पढ़ पाया हूं, क्योंकि इनका अनुवाद फ्रेंच भाषा में न के बराबर होता है। इन दिनों भारत में बहुत अधिक यात्राएं जरूर कर रहा हूं, जिससे यहां की सभ्यता-संस्कृति के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का अवसर मिल रहा है।
फ्रेंच तथा अन्य यूरोपीय साहित्य में क्या अंतर है?
– फ्रेंच साहित्य बहुआयामी है। इसलिए किसी दूसरे यूरोपीय देशों के साहित्य से अंतर या तुलना कर पाना कठिन है। फ्रेंच साहित्य अपने-आप में अंतर्निहित होता है, जबकि ब्रिटेन का साहित्य बहुर्मुखी है।
एडी इजार्ड, दोस्तोयेव्स्की आदि मेरे प्रिय लेखक हैं। मैं फ्रेंच साहित्य और संस्कृति से प्यार करता हूं और उससे बहुत अधिक प्रभावित भी हूं। जब मैं अपने देश से बाहर जाकर लोगों से मिलता हूं, तो लोग कहते हैं कि आपके लेखन में एक ठेठ फ्रांसीसी दिखता है।
म्यूजिक ने लेखन को कितना प्रभावित किया है।
– शुरुआत में मैं गिटार बजाता था। अब लेखन की तरफ मेरा मन ज्यादा रमता है। संगीत का बहुत बड़ा प्रभाव मेरे लेखन पर है।

क्या भारत की तरह फ्रांस में भी युवा और वरिष्ठ लेखकों के बीच खाई है?
– क्लासिक लिट्रेचर राइटर और आज के लेखकों के लेखन में अंतर तो दिखता है, लेकिन दोनों तबके के लेखक सिर्फ अपने लेखन से मतलब रखते हैं।
आपके ज्यादातर उपन्यास बेस्टसेलर हैं?
– लेखन की शुरुआत करते ही मैं बेस्टसेलर राइटर नहीं बन गया। लगभग 10 साल तक मेरी किताबें बिकती ही नहीं थीं। लोग मेरे बारे में जानते तक नहीं थे। एक जर्नलिस्ट ने जब मेरी किताब के बारे में कुछ लिखा, तब लोगों ने मेरे लेखन को जाना और वे किताबों को खरीदने लगे। अगर मुझे बेस्टसेलर राइटर बनने की रेसिपी पता होती, तो मैं दस साल तक इंतजार नहीं करता। अगर रेसिपी होती, तो सारे लोग इसे जानकर बेस्टसेलर राइटर बन जाते।

सोशल मीडिया पर अपने उपन्यासों की चर्चा करते हैं?
– सोशल मीडिया पर मैं बहुत अधिक एक्टिव नहीं रहता हूं। फेसबुक व ट्विटर पर मेरा एकाउंट जरूर है, लेकिन न के बराबर उन पर अपनी जानकारियां शेयर करता हूं। 


स्क्रीन राइटिंग और बुक राइटिंग में कितना अंतर है?
– दोनों विधाएं एक-दूसरे से बहुत अलग हैं। दोनों में कॉमन प्वाइंट है-कहानी कहना। उपन्यास लेखन का जो मनोविज्ञान है, पढऩे वालों को उसे छूना पड़ता है। इसलिए शब्दों का बहुत प्रभाव पड़ता है। दूसरी ओर स्क्रीन राइटिंग में बॉडी लैंग्वेज बहुत मायने रखती है।

भारतीय फिल्म देखते हैं?
फिल्म '
लंचबॉक्स' देखी। बहुत अच्छी लगी। इसकी शूटिंग हिंदुस्तान में  हुई है, लेकिन मैं जानता हूं कि यह आम हिंदुस्तानी फिल्मों से बिल्कुल अलग है। यहां की सिनेमा की टीम बहुत अच्छी होती है। मेरे मित्रों ने भी यहां फिल्में बनाई हैं। टेक्निकल लोगों की भी टीम अच्छी होती है। उनका काम बढिय़ा होता है।

आपके लिए अध्यात्म के क्या मायने हैं?
– अध्यात्म मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। मेरी जो फैमिली बैकग्राउंड है, वह बहुत कल्चरल नहीं है। घर में किताबें नहीं रहती थीं। एक बार मैं बहुत जोर से बीमार पड़ा और मुझे लंबे समय तक अस्पताल में रहना पड़ा। तब मैंने पेंटिंग, म्यूजिक और किताबें पढऩे की शुरुआत की। कला के विविध रूपों को ही मैं अध्यात्म मानता हूं। उस समय से मैं थोड़ा अंधविश्वासी भी हो गया हूं।