नई दिल्लीः रक्षा बंधन और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती एक साथ आई, तो संस्कृत दिवस की खुशियां भी बढ़ीं. देश ने गुप्त की कई रचनाओं के साथ उन्हें याद किया. कोरोना के चलते उत्सव तो नहीं हुए, पर ऑनलाइन आयोजन अवश्य हुए. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण की जयंती पर उन्हें नमन करते हुए उनकी कृतियों को याद किया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना से ओतप्रोत खड़ी बोली की उनकी रचनाओं ने बड़े वर्ग पर प्रभाव डाला. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी रचनाओं के प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि दी थी. गुप्त जी को उनके  कालजयी साहित्य के लिए पद्भभूषण सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया. मुख्यमंत्री ने कहा कि गुप्त जी की  रचनाएं भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं जो पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगीं. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी ट्वीट कर लिखा, 'राष्ट्रकवि पद्म भूषण मैथिलीशरण गुप्त जी की जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि. उनकी महान काव्य रचनाओं ने संपूर्ण राष्ट्र में देशभक्ति की भावना का संचार किया. हिंदी साहित्य जगत में उनकी कालजयी रचनायें सदैव प्रेरणा देती रहेंगी.'इसी तरह दिल्ली संस्कृत व हिदी अकादमी के सचिव डॉ जीतराम भट्ट ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता की इन पंक्तियों कि 'जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं पशु है निरा और मृतक समान है' के साथ रक्षा बंधन व संस्कृत दिवस पर अपनी बात कही.
जीतराम भट्ट ने कहा कि हम सब जानते हैं कि शिक्षा का मूल उद्देश्य बच्चों को संस्कारित करना है. संस्कार मनुष्य को कृतज्ञ बनाते हैं और कृतज्ञता मनुष्य के मन में माता, पिता, गुरु, पूर्वज, समाज, जन्मभूमि, देश व भाषा के प्रति प्रेम का भाव जगाती है. जबकि कृतघ्नता केवल स्वार्थपराणता, विद्वेष और घृणा को ही जन्म देती है. उन्होंने कहा कि संस्कृत सिर्फ एक भाषा नहीं है, वह हमारा गौरव व हमारे पूर्वजों की धरोहर है. पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम जब ग्रीस गए, तब वहां के राष्ट्रपति कार्लोस पांपाडलीस ने उनका स्वागत संस्कृत भाषा में 'राष्ट्रपतिमहाभागा: सुस्वागतम् यवनदेशे' कह कर किया था. विश्व की ज्ञात भाषाओं में संस्कृत सबसे पुरानी है. भारत की सभी भाषाएं संस्कृत से ही निकली हैं. भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त फारसी, लेटिन, अंग्रेजी, श्रीलंका, नेपाल, अफ्रीका, इंडोनेशिया, मलेशिया व सिगापुर की भाषाओं पर भी संस्कृत का प्रभाव है. जीतराम ने कहा कि संस्कृत में धर्म की चर्चा के साथ दर्शन, न्याय, विज्ञान, व्याकरण, साहित्य आदि विषयों का प्रतिपादन भी हुआ है. उन्होंने कहा, यह हास्यास्पद है कि संस्कृत को आधुनिक भाषा नहीं माना जाता है और भारत में तो संस्कृत को पूजा-पाठ की भाषा या कठिन भाषा बताने का एक फैशन सा चल पड़ा है, जिस कारण युगों-युगों से ऋषियों की ओर से किए गए त्याग, तप, स्वाध्याय, अनुसंधान से भारतीय समाज आज भी वंचित हैं. इसलिए मैं निवेदन करता हूं कि संस्कृत ज्ञान-विज्ञान के विषय में सही जानकारी प्राप्त करें और भारत की इस प्राचीन धरोहर को उपेक्षित होने से बचाएं.