नई दिल्लीः यह कविता, विचार-विमर्श और साहित्य चर्चा से भरी एक ऐसी अनौपचारिक सांझ थी, जिसकी यादें लंबे समय तक बनी रहने वाली हैं. अवसर था अपनी भाषा हिंदी को समृद्ध और मजबूत करने को लेकर जारी दैनिक जागरण की अनूठी पहल 'हिंदी हैं हम' अभियान के तहत साहित्य अकादमी के सभागार में आयोजित कार्यक्रम 'दैनिक जागरण सान्निध्य' का. यह 'सान्निध्य' का पहला जमावड़ा था, जिसमें राजधानी के साहित्य, संस्कृति, भाषा और रंगमंच जगत की तमाम हस्तियां जुटीं. दो सत्रों में विभक्त इस आयोजन के पहले सत्र 'समकालीन कविता के स्वर' की शुरुआत जितेंद्र श्रीवास्तव के इस वक्तव्य से हुई कि समकालीन कविता का फलक अब इतना बड़ा हो गया है कि उसे किसी एक सत्र में समेटना मुश्किल. वह भी तब जब आज के दौर में दशक से भी कम समय में लेखकीय पीढ़ी बदल जा रही है. तेजी से हो रहे इस बदलाव में कविता का कोई एक चरित्र विशेष नहीं रह गया है. पहले कवि के रूप में उन्होंने लीना मल्होत्रा को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया. जिन्होंने 'मधुमेह' और 'टुच्चा आदमी' सहित कुल पांच कविताएं पढ़ीं. उनके बाद कवि उमाशंकर चौधरी ने 'एक दिन मैं भी', 'सबसे पहले इसका साथ', 'कुछ भी वैसा नहीं' और 'बच्ची-बच्ची नहीं एक स्त्री है' जैसी अपनी चर्चित कविताएं सुनाईं. कवि हेमंत कुकरेती ने अपनी 'बोलते थे सब', 'कवियों के बारे में', 'असरदार' और 'जन्मना मृत्यु' कविता का पाठ किया तो प्रो. जितेंद्र श्रीवास्तव ने 'पत्नी पूछती है', 'खेतों का अस्वीकार', 'गांव के दक्खिन हो गया है आखिरी आदमी', 'अबकी मिलना तुम' सुनाईं।
काव्य सत्र के समापन के पश्चात दूसरे सत्र की शुरुआत हुई. 'स्त्री लेखनः स्वप्न और संघर्ष', विषय पर आधारित इस सत्र के संचालक के तौर पर कथाकार बलराम ने कहा कि आज सिर्फ स्त्री लेखन ही नहीं उसके जीवन के सपनों और संघर्ष पर बात होनी चाहिए क्योंकि एक लेखक सिर्फ सर्जक रहता है, दलित, ब्राह्मण, स्त्री या पुरुष नहीं. पहले वक्ता के तौर पर लेखिका प्रज्ञा ने कहा एक लेखक और स्त्री के रूप में मैंने यह महसूस किया है कि मुक्ति स्त्री का सबसे बड़ा 'युटोपिया' है. फिर हर स्त्री की चाहतें व सपने एक नहीं हैं, सबकी स्थितियां और हालात भी अलग-अलग हैं और पितृसत्ता और धर्म हाथ मिलाकर इनकी दिशा संचालित करती हैं. नासिरा शर्मा की कहानी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि स्वप्न देखना और संघर्ष करना ही स्त्री के जिंदा होने की पहचान है. अगली वक्ता के रूप में ज्योति चावला ने वर्जिनिया वुल्फ की किताब और शबाना आजमी की एक लघु फिल्म का जिक्र करते हुए कहा कि हमें यह भी देखना होगा कि स्त्री के सपने कहां से आते हैं, अगर स्वप्न पुरुषों से आते हैं, तो उसकी परिणिति अच्छी होगी. हर लड़की को यह बताया जाता है कि उसके सपनों में घोड़े पर सवार होकर आने वाला उसे उसके सारे दुखों से मुक्त करा देगा. यह एक ऐसा समाज है, जहां स्त्री के लिए अपना शब्दकोष तक नहीं. वंदना राग का कहना था कि न जाने कितने दशकों से हम स्त्री को लेकर इसी तरह की बात करते आ रहे हैं, पर हालात बदलते नहीं. यहां तक कि लड़कियों के साथ जोर-जबरदस्ती वाली खबरें भी संवेदनात्मक न होकर विवरणात्मक हो गई हैं. स्त्री को कोई विशेष स्तर नहीं बल्कि संवेदनशील सोच व बराबरी चाहिए. ब्राह्मणवाद और पितृसत्ता को शातिर और बाजार को 'कॉस्मेटिक दुनिया' बताते हुए उन्होंने हजारों साल से चले आ रही व्यवस्था को पढ़-लिखकर ही बदलने पर जोर दिया.
इस सत्र की अध्यक्षता कर रही वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया ने दैनिक जागरण का आभार जताते हुए कहा कि जब समूचा सरकारी तंत्र हिंदी दिवस और पखवारा मनाने में मशगूल था, तब दैनिक जागरण ने इस ज्वलंत विषय को उठाया. तमाम स्त्री केंद्रित रचनाओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि स्त्री लेखन में नए तरह का नवाचार और तीखापन आ गया है. आज की कई लेखिकाओं में दुस्साहस तक का आत्मविश्वास है. पर हमें यह याद रखना चाहिए कि हमें कोई आदर्श पुरुष नहीं, वही दोषों से भरा इनसान चाहिए, जैसे हम हैं, जिससे हम लड़ सकें, झगड़ सकें, मांग सकें, दे सकें. हमें पक्ष- विपक्ष, प्रेम-विरोध सब चाहिए. यह एक अच्छी बात है कि स्त्रियों की कहानियां अन्य चिंताओं के साथ मिल गई हैं, जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि हम किसी अलग संसार के वासी नहीं हैं. मैं 'स्त्री लेखक' के कोष्ठक का वहिष्कार करती हूं.
'सान्निध्य' का यह आयोजन चर्चा और उपस्थिति की दृष्टि से भी काफी सफल रहा. वक्ताओं के अलावा इसमें सुधीश पचौरी, क्षमा शर्मा, भगवानदास मोरवाल, अदिति माहेश्वरी गोयल, प्रेम भारद्वाज जैसे साहित्यकार, प्रकाशक, संपादक व लेखक भी भारी संख्या में मौजूद रहे. मथुरा और कोलकाता से आए साहित्यप्रेमियों, रंगकर्मियों से स्वतःस्फूर्त सवालों से पहले ही आयोजन की देशव्यापी पहुंच का भान करा दिया. इस कार्यक्रम का फेसबुक पर लाइव प्रसारण भी किया गया. शुरुआत में दैनिक जागरण के सहयोगी संपादक अनंत विजय ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में किए जा रहे दैनिक जागरण के सभी कार्यक्रमों की रूपरेखा रखते हुए बताया कि सोशल मीडिया वाले दौर में मेल-मिलाप सिर्फ आभासी ही न रह जाएं और हम सबके बीच सीधा संवाद भी बन सके इसी सोच के साथ 'दैनिक जागरण सान्निध्य' की शुरुआत की गई है. 'सान्निध्य' हर महीने के दूसरे शनिवार को आयोजित किया जाएगा. यह मंच कला, साहित्य, संस्कृति, रंगमंच और समाज से जुड़े मुद्दों पर सभी आम-खास के लिए खुला होगा, जिसमें विशेषज्ञ विचारक श्रोताओं के समक्ष विचार-मंथन करेंगे.